Friday, 5 August 2016

फेसबुक पर किसी को ब्रह्मज्ञान नहीं मिल सकता .....

 फेसबुक पर किसी को ब्रह्मज्ञान नहीं मिल सकता .......
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किसी भी आध्यात्मिक साधना का आधार है .... भक्ति और समर्पण| भक्ति का अर्थ परमप्रेम होता है जहाँ सिर्फ समर्पण होता है, कोई माँग नहीं| जहाँ माँग है वहाँ व्यापार यानि सौदा है|
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सारे प्रश्नों के उत्तर परमात्मा में हैं| इसके लिए साधना करनी होती है और किसी श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से मार्गदर्शन प्राप्त करना होता है| यह फेसबुक पर नहीं हो सकता| साधना तर्कों से नहीं, ह्रदय के भीतर प्रेम जागृत कर के होती है| अनेक जन्म जिस को प्राप्त करने में लग जाते हैं, वह कोई सांसारिक जोड़-तोड़ से प्राप्त नहीं किया जा सकता|
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भगवान से परम प्रेम करो | परम प्रेम होता है .... भक्ति और समर्पण, कोई सौदेबाजी या व्यापार नहीं | सारे प्रश्नों के उत्तर परमात्मा में हैं | इसके लिए साधना करनी होती है | किसी भी जिज्ञासू को नम्रतापूर्वक किसी ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से मार्गदर्शन प्राप्त करना होता है, जीवन में निष्ठापूर्वक खोज करनी होती है जो फेसबुक पर नहीं हो सकती | साधना भी फेसबुक पर तर्कों से नहीं, ह्रदय के भीतर होती है | अनेक जन्म जिस को प्राप्त करने में लग जाते हैं, वह कोई सांसारिक परीक्षा की तरह नहीं है जो किसी तरह जोड़-तोड़ कर उतीर्ण की जा सकती है |
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प्राचीन काल के कुछ आचार्यों को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए स्मरण करते हैं, जिनकी दिव्य सत्ता सूक्ष्म जगत में है, जहाँ से वे निष्ठावान मुमुक्षुओं का मार्गदर्शन और सहायता करते हैं........
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(1) भगवान सनत्कुमार .... ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य है| उन्होंने अपने शिष्य देवर्षि नारद को ब्रह्मज्ञान दिया था| ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय ||

(2) भगवान देवर्षि नारद .... भक्ति-सूत्रों के आचार्य हैं| भक्ति-सूत्रों की रचना उन्होंने ही की थी| वे भक्ति के आचार्य हैं|
(3) भगवान अगस्त्य .... शाक्तागमों के आचार्य हैं| श्रीविद्या और अन्य शाक्त आगमों के वे आचार्य हैं|
(4) भगवान दुर्वासा .... शैवागमों के आचार्य हैं| शैव दर्शन के आचार्य वे ही हैं|
(5) भगवान श्रीकृष्ण .... जगत्गुरू हैं| साकार परमब्रह्म हैं| गीता का ज्ञान उन्हीं की कृपा से हमें मिला है|
(6) भगवान वेदव्यास .... ब्रह्मसूत्रों, महाभारत (गीता जिसका ही भाग है), और प्रायः सभी पुराणों के रचनाकार| समाज को एक नई व्यवस्था उन्होंने दी और वेदों को चार भागों में बाँटा|
(7) भगवान पातंजलि .... योग-सूत्रों के आचार्य हैं| वे शेषावतार है| घोर कलियुग में जीवों के कल्याण के लिए वे तीन बार अवतृत हुए ..... पातंजलि के रूप में, आचार्य गोबिन्दपाद के रूप में, और आचार्य चरक के रूप में|
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सभी को शुभ कामनाएँ | ॐ ॐ ॐ ||

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