हम एक माध्यम हैं जिन से भगवान प्रवाहित होते हैं, लेकिन हम अपने अहंकार व लोभ के वशीभूत होकर भगवान के उस प्रवाह को अवरुद्ध कर देते हैं| यह बात वही सत्यनिष्ठ श्रद्धालु समझ सकता है जिस के हृदय में भगवान को पाने की अतृप्त प्यास, तड़प और प्रेम है| हम अधिकाधिक निष्ठावान बनने का प्रयास करें| किसी भी तरह की कोई कुटिलता और असत्यता हम में न रहे| एक दिन हम पाएंगे कि हम भगवान के साथ एक हैं, कहीं कोई भेद नहीं है| किसी को भगवान की भक्ति नहीं करनी है, तो वह मत करे| भगवान उसकी प्रतीक्षा करेंगे| ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
३ जनवरी २०२१
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