आध्यात्मिक साधना का अर्थ है "आत्म-साधना" यानि अपने वास्तविक स्वयं, अपनी आत्मा को जानना। यह आत्मज्ञान ही मोक्ष का हेतु है। मनुष्य के जब पाप-कर्मफल क्षीण होने लगते हैं, और पुण्य-कर्मफलों का उदय होता है, तब परमात्मा को जानने की एक अभीप्सा जागृत होती है। तब करुणा व प्रेमवश परमात्मा स्वयं, एक सद्गुरु के रूप में मार्गदर्शन करने आ जाते हैं, और हृदय में इस सत्य का बोध तुरंत हो जाता है। साधक को उसकी पात्रतानुसार ही मार्गदर्शन प्राप्त होता है जिसका अतिक्रमण नहीं हो सकता। साधना के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हमारा लोभ और अहंकार है। परमात्मा के सिवाय अन्य किसी भी लाभ की आकांक्षा नहीं होनी चाहिए, अन्यथा पतन सुनिश्चित है।
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ जनवरी २०२२
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