गुरु रूप ब्रह्म ही इस नौका के कर्णधार हैं .....
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जीवन के अंधेरे मार्गों पर वे ही मेरे मार्गदर्शक हैं| इस अज्ञानांधकार की निशा में वे ही मेरे चन्द्रमा हैं| वे ही मेरे ज्ञानरूपी दिवस के सूर्य हैं| मेरे बिखरे हुए भटकते विचारों के ध्रुव भी वे ही हैं| प्रबल चक्रवाती झंझावातों और भयावह अति उत्ताल तरंगों से त्रस्त दारुण दुःखदायी भवसागर की इस घोर तिमिराच्छन्न निशा में इस असंख्य छिद्रों वाली देहरूपी नौका के कर्णधार भी वे ही हैं| उनके आगमन से अंतर्चैतन्य में अब कोई अन्धकार रहा ही नहीं है| सम्पूर्ण अस्तित्व ज्योतिर्मय है व चारों ओर आनंद ही आनंद और अनुकूलता है| अब इस दिव्य चेतना में ही वे मुझे अवस्थित रखें जहाँ भवसागर का तो कोई आभास ही नहीं है| लगता है पार हो ही गया है| हे गुरु रूप ब्रह्म, आपको कोटि कोटि नमन|
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वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कःप्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च |
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वःपुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||गीता ११:३९||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व |
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ||गीता ११:४०||
सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति |
अजानता महिमानं तवेदंमया प्रमादात्प्रणयेन वापि ||गीता ११:४१||
यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु |
एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षंतत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम् ||गीता ११:४२||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ नवम्बर २०१८
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जीवन के अंधेरे मार्गों पर वे ही मेरे मार्गदर्शक हैं| इस अज्ञानांधकार की निशा में वे ही मेरे चन्द्रमा हैं| वे ही मेरे ज्ञानरूपी दिवस के सूर्य हैं| मेरे बिखरे हुए भटकते विचारों के ध्रुव भी वे ही हैं| प्रबल चक्रवाती झंझावातों और भयावह अति उत्ताल तरंगों से त्रस्त दारुण दुःखदायी भवसागर की इस घोर तिमिराच्छन्न निशा में इस असंख्य छिद्रों वाली देहरूपी नौका के कर्णधार भी वे ही हैं| उनके आगमन से अंतर्चैतन्य में अब कोई अन्धकार रहा ही नहीं है| सम्पूर्ण अस्तित्व ज्योतिर्मय है व चारों ओर आनंद ही आनंद और अनुकूलता है| अब इस दिव्य चेतना में ही वे मुझे अवस्थित रखें जहाँ भवसागर का तो कोई आभास ही नहीं है| लगता है पार हो ही गया है| हे गुरु रूप ब्रह्म, आपको कोटि कोटि नमन|
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वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कःप्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च |
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वःपुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||गीता ११:३९||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व |
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ||गीता ११:४०||
सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति |
अजानता महिमानं तवेदंमया प्रमादात्प्रणयेन वापि ||गीता ११:४१||
यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु |
एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षंतत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम् ||गीता ११:४२||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ नवम्बर २०१८
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