आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म और कर्मफल .....
------------------------------------------------
आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म और कर्मफलों का सिद्धांत ..... ये तीनों अटल सत्य हैं| मृत्यु देह की होती है, आत्मा की नहीं| मनुष्य देह की मृत्यु के समय के अंतिम क्षणों में आ रहे विचारों के अनुसार ही पुनर्जन्म होता है| पूर्व जन्म की स्मृतियाँ आने पर उनको विस्मृत कर देना ही उचित है, क्योंकि उनका कोई उपयोग नहीं है| ये आध्यात्मिक साधना में भी बाधक हैं| पूर्वजन्म के शत्रु और मित्र इस जीवन में निश्चित रूप से मिलते हैं| हम उन्हें पहिचान नहीं पाते पर वे अपना अपना उद्देश्य पूरा कर के चले जाते हैं| मुझे पूर्वजन्मों के अनेक शत्रु भी मिले हैं और अनेक मित्र भी| पूर्वजन्मों की स्मृतियाँ भी आईं पर उन्हें सदा भुला दिया, कोई महत्त्व नहीं दिया|
.
जीवन में डरने के लिए कुछ भी नहीं है, इसे समझने की आवश्यकता है| हम पूर्ण हैं, हमारी पूर्णता में कोई कमी नहीं है| हमारा अहंभाव ही हमें अपूर्ण बनाता है| पूर्णता चाहे न हो, पर कभी न कभी पूर्णता के कुछ क्षण सभी के जीवन में अवश्य आते हैं जिनमें पूर्णता की अनुभूतियाँ होती हैं| अपनी पूर्णता का ध्यान हर समय करें|
.
यदि मनुष्य जन्म लेकर भी हम इस जन्म में परमात्मा को उपलब्ध नहीं हो पाये तो निश्चित रूप से हमारा जन्म लेना ही विफल था, हम इस पृथ्वी पर भार ही थे| जीवन की सार्थकता उसी दिन होगी जिस दिन परमात्मा से कोई भेद नहीं रहेगा|
.
ब्रह्ममुहूर्त में शीघ्र उठ कर शांत वातावरण में बैठिये| मन को सब प्रकार के नकारात्मक विचारों से मुक्त कर कुछ देर गुरु महाराज और भगवान का स्मरण करें| सीधे बैठकर तीन चार बार गहरे साँस लें| फिर तनाव मुक्त होकर भ्रूमध्य में दृष्टी रखें| अपने गुरु महाराज और भगवान की उपस्थिति का आभास करें और उन्हें प्रणाम करें| सर्वव्यापी परमात्मा का ध्यान करें| इस को अपनी आदत और स्वभाव बनाएँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ गुरुभ्यो नमः ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० नवम्बर २०१८
------------------------------------------------
आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म और कर्मफलों का सिद्धांत ..... ये तीनों अटल सत्य हैं| मृत्यु देह की होती है, आत्मा की नहीं| मनुष्य देह की मृत्यु के समय के अंतिम क्षणों में आ रहे विचारों के अनुसार ही पुनर्जन्म होता है| पूर्व जन्म की स्मृतियाँ आने पर उनको विस्मृत कर देना ही उचित है, क्योंकि उनका कोई उपयोग नहीं है| ये आध्यात्मिक साधना में भी बाधक हैं| पूर्वजन्म के शत्रु और मित्र इस जीवन में निश्चित रूप से मिलते हैं| हम उन्हें पहिचान नहीं पाते पर वे अपना अपना उद्देश्य पूरा कर के चले जाते हैं| मुझे पूर्वजन्मों के अनेक शत्रु भी मिले हैं और अनेक मित्र भी| पूर्वजन्मों की स्मृतियाँ भी आईं पर उन्हें सदा भुला दिया, कोई महत्त्व नहीं दिया|
.
जीवन में डरने के लिए कुछ भी नहीं है, इसे समझने की आवश्यकता है| हम पूर्ण हैं, हमारी पूर्णता में कोई कमी नहीं है| हमारा अहंभाव ही हमें अपूर्ण बनाता है| पूर्णता चाहे न हो, पर कभी न कभी पूर्णता के कुछ क्षण सभी के जीवन में अवश्य आते हैं जिनमें पूर्णता की अनुभूतियाँ होती हैं| अपनी पूर्णता का ध्यान हर समय करें|
.
यदि मनुष्य जन्म लेकर भी हम इस जन्म में परमात्मा को उपलब्ध नहीं हो पाये तो निश्चित रूप से हमारा जन्म लेना ही विफल था, हम इस पृथ्वी पर भार ही थे| जीवन की सार्थकता उसी दिन होगी जिस दिन परमात्मा से कोई भेद नहीं रहेगा|
.
ब्रह्ममुहूर्त में शीघ्र उठ कर शांत वातावरण में बैठिये| मन को सब प्रकार के नकारात्मक विचारों से मुक्त कर कुछ देर गुरु महाराज और भगवान का स्मरण करें| सीधे बैठकर तीन चार बार गहरे साँस लें| फिर तनाव मुक्त होकर भ्रूमध्य में दृष्टी रखें| अपने गुरु महाराज और भगवान की उपस्थिति का आभास करें और उन्हें प्रणाम करें| सर्वव्यापी परमात्मा का ध्यान करें| इस को अपनी आदत और स्वभाव बनाएँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ गुरुभ्यो नमः ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० नवम्बर २०१८
No comments:
Post a Comment