Thursday 1 November 2018

(वासुदेवः सर्वम् इति) सब नामरूपों से परे भगवान वासुदेव ही सर्वस्व हैं .....

(वासुदेवः सर्वम् इति) सब नामरूपों से परे भगवान वासुदेव ही सर्वस्व हैं .....
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हम उन्हें प्रेम से कुछ भी कहें, वे भगवान सब नामरूपों से परे हैं| मैं उन्हें "परमशिव" कहता हूँ, वे ही मेरे सर्वस्व हैं| अगर किसी से मिलना ही हो तो मैं ऐसे ही लोगों से मिलता हूँ जो निरंतर भगवान का स्मरण करते हैं, अन्यथा मुझे अकेले ही रहना अच्छा लगता है| जिनके हृदय में भगवान नहीं है ऐसे लोगों से मैं दूर रहता हूँ| सामाजिकता के नाते ही समाज में अनेक लोगों से मिलना पड़ता है| पर स्वतंत्र इच्छा से मैं हर किसी से नहीं मिलता| स्वतंत्र इच्छा से मैं उन्हीं से मिलता हूँ जिनके जीवन में .. "वासुदेवः सर्वम्" है|
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गीता में भगवान कहते हैं .....
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते| वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः||७:१९||
इसका भावार्थ है .....
बहुत जन्मों के अन्त में (किसी एक जन्म विशेष में) ज्ञान को प्राप्त होकर कि यह सब वासुदेव है ज्ञानी भक्त मुझे प्राप्त होता है ऐसा महात्मा अति दुर्लभ है|
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उन के समान या उन से अधिक और कोई भी नहीं है| एक लाख में से कोई दो या तीन व्यक्ति ही ऐसे होते हैं जो अपने पूर्ण ह्रदय से भगवान से प्रेम करते हैं| जो निरंतर भगवान का स्मरण करते हैं ऐसे सभी महात्माओं को मैं नमन करता हूँ| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ नवम्बर २०१८

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