आजकल भारत के प्रधान मंत्री जापान की यात्रा पर हैं जिसका सामरिक और
टेक्नोलॉजी की दृष्टी से बहुत अधिक महत्त्व है| जापान की कई यादें मुझे भी आ
रही हैं| वहाँ भारतीयों की संख्या खूब अच्छी है| नौकरी करने वाले भारतीय
भी वहाँ खूब हैं और भारतीय व्यापारी भी वहाँ खूब हैं| जापान में अनेक
स्थानों पर जाने, घूमने-फिरने और अनेक लोगों से मिलने-जुलने का अवसर मुझे
कई बार खूब मिला है| एक बार सपत्नीक भी वहाँ जाने का मुझे अवसर मिला था|
वहाँ सिर्फ भाषा की ही कठिनाई रही पर इस कारण कभी भी कोई परेशानी
नहीं हुई| सारा कामकाज और पढाई-लिखाई उनकी स्वयं की जापानी भाषा में ही
होता है| अंग्रेजी सिर्फ उन्हीं को आती है जो इसे एक भाषा के रूप में अपनी
इच्छा से सीखते हैं|
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जापान पर सबसे अधिक प्रभाव 'बोधिधर्म' नाम के एक भारतीय बौद्ध भिक्षु का है जो ईसा की छठी शताब्दी में वहाँ महायान बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए गए थे| बोधिधर्म की पद्धति में ध्यान पर विशेष जोर था| संस्कृत का शब्द "ध्यान" अपभ्रंस होकर चीन में "चान" हुआ और जापान में "झेन" (ZEN) हुआ| बोधिधर्म द्वारा फैलाए हुए बौद्धधर्म का जो रूप वहाँ प्रचलित है, उसे झेन (ZEN) कहते हैं| बौद्धधर्म की इस पद्धति में ध्यान साधना का ही विशेष महत्त्व है| यह झेन मत कई शताब्दियों तक जापान का राजधर्म रहा|
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बोधिधर्म का जन्म दक्षिण भारत में पल्लव राज्य के राज परिवार में हुआ था| वे कांचीपुरम के राजा के पुत्र थे, लेकिन छोटी आयु में ही उन्होंने राज्य छोड़ दिया और भिक्षुक बन गए| भारत से समुद्री मार्ग से वे चीन के हुनान प्रान्त में गए और वहाँ के प्रसिद्ध शाओलिन मंदिर में लम्बे समय तक रहे| वहाँ से वे जापान गए| उनके बारे में अनेक कहानियाँ और किस्से प्रसिद्ध हैं जिनकी प्रामाणिकता के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता| बोधिधर्म के बारे में तो मुझे जो कुछ भी ज्ञात है वह जापान के याकोहामा नगर के सबसे बड़े बौद्ध मठ से प्राप्त परिचयात्मक साहित्य से है|
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जापान में बौद्ध मत चीन के माध्यम से एक भारतीय धर्मप्रचारक बोधिधर्म द्वारा आया| पर चीन में तो बौद्धधर्म सन ००६७ ई.में ही आ गया था| तीन-चार बार चीन जाने का अवसर मुझे मिला है| चीन में सरकारी पर्यटन विभाग द्वारा दी हुई एक पुस्तक में लिखा था कि सन ००६७ ई.में भारत से दो धर्मप्रचारक आये थे जिन्होनें चीन में बौद्ध धर्म फैलाया| उनके नाम भी उस पुस्तक में थे|
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भारत से दक्षिण दिशा की ओर में जो बौद्ध देश हैं उन में हीनयान बौद्धमत, और भारत के उत्तर में स्थित देशों में महायान बौद्धमत प्रचलित है| तिब्बत में महायान बौद्धधर्म का ही रूप बदल कर वज्रयान हो गया| इस विषय पर एक लेख भी कुछ वर्षों पूर्व मैनें लिखा था| कभी अवसर मिला तो हीनयान और महायान आदि के बारे में फिर कभी लिखूंगा| जापान ने इस्लाम को कभी भी अपने देश में नहीं आने दिया| वहाँ के लोग अपने देश और अपनी संस्कृति के प्रति बहुत संवेदनशील हैं|
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
कृपा शंकर
२८ अक्टूबर २०१८
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जापान पर सबसे अधिक प्रभाव 'बोधिधर्म' नाम के एक भारतीय बौद्ध भिक्षु का है जो ईसा की छठी शताब्दी में वहाँ महायान बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए गए थे| बोधिधर्म की पद्धति में ध्यान पर विशेष जोर था| संस्कृत का शब्द "ध्यान" अपभ्रंस होकर चीन में "चान" हुआ और जापान में "झेन" (ZEN) हुआ| बोधिधर्म द्वारा फैलाए हुए बौद्धधर्म का जो रूप वहाँ प्रचलित है, उसे झेन (ZEN) कहते हैं| बौद्धधर्म की इस पद्धति में ध्यान साधना का ही विशेष महत्त्व है| यह झेन मत कई शताब्दियों तक जापान का राजधर्म रहा|
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बोधिधर्म का जन्म दक्षिण भारत में पल्लव राज्य के राज परिवार में हुआ था| वे कांचीपुरम के राजा के पुत्र थे, लेकिन छोटी आयु में ही उन्होंने राज्य छोड़ दिया और भिक्षुक बन गए| भारत से समुद्री मार्ग से वे चीन के हुनान प्रान्त में गए और वहाँ के प्रसिद्ध शाओलिन मंदिर में लम्बे समय तक रहे| वहाँ से वे जापान गए| उनके बारे में अनेक कहानियाँ और किस्से प्रसिद्ध हैं जिनकी प्रामाणिकता के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता| बोधिधर्म के बारे में तो मुझे जो कुछ भी ज्ञात है वह जापान के याकोहामा नगर के सबसे बड़े बौद्ध मठ से प्राप्त परिचयात्मक साहित्य से है|
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जापान में बौद्ध मत चीन के माध्यम से एक भारतीय धर्मप्रचारक बोधिधर्म द्वारा आया| पर चीन में तो बौद्धधर्म सन ००६७ ई.में ही आ गया था| तीन-चार बार चीन जाने का अवसर मुझे मिला है| चीन में सरकारी पर्यटन विभाग द्वारा दी हुई एक पुस्तक में लिखा था कि सन ००६७ ई.में भारत से दो धर्मप्रचारक आये थे जिन्होनें चीन में बौद्ध धर्म फैलाया| उनके नाम भी उस पुस्तक में थे|
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भारत से दक्षिण दिशा की ओर में जो बौद्ध देश हैं उन में हीनयान बौद्धमत, और भारत के उत्तर में स्थित देशों में महायान बौद्धमत प्रचलित है| तिब्बत में महायान बौद्धधर्म का ही रूप बदल कर वज्रयान हो गया| इस विषय पर एक लेख भी कुछ वर्षों पूर्व मैनें लिखा था| कभी अवसर मिला तो हीनयान और महायान आदि के बारे में फिर कभी लिखूंगा| जापान ने इस्लाम को कभी भी अपने देश में नहीं आने दिया| वहाँ के लोग अपने देश और अपनी संस्कृति के प्रति बहुत संवेदनशील हैं|
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
कृपा शंकर
२८ अक्टूबर २०१८
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