Thursday, 1 November 2018

ध्यान किस का होता है ? .....

ध्यान किस का होता है ? .....
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ध्यान उसी का होता है जिस से हमें परमप्रेम होता है| बिना परमप्रेम के कोई ध्यान नहीं होता| इस परमप्रेम को ही भक्ति कहते हैं| अपने विचारों के प्रति सतत् सचेत रहिये| जैसा हम सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं| हमारे विचार ही हमारे "कर्म" हैं, जिनका फल हमें भोगना ही पड़ता है| मन की हर इच्छा, हर कामना एक कर्म या क्रिया है जिसकी प्रतिक्रिया अवश्य होती है| यही कर्मफल का नियम है| अतः हम स्वयं को मुक्त करें ..... सब कामनाओं से, सब संकल्पों से, सब विचारों से, और निरंतर शिव भाव में स्थित रहें| यह शिवभाव भी परमप्रेम का ही एक रूप है जिसमें हम स्वयं ही परमप्रेममय हो प्रेमास्पद के साथ एक हो जाते हैं, कहीं कोई भेद नहीं रहता| यही पराभक्ति है और यही वेदान्त है|
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प्रेमास्पद से पृथकता के भाव का होना ही सारे दुःखों, पीडाओं और कष्टों का कारण है| प्रेम तो हमें उस से हो गया है जिस का कभी जन्म ही नहीं हुआ है, और जिस की कभी मृत्यु भी नहीं होगी| जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु तो अवश्य ही होगी| पर जिसने कभी जन्म ही नहीं लिया, क्या वह मृत्यु को प्राप्त कर सकता है?
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हमारा एक अजन्मा स्वरुप भी है जो अनादि और अनंत है| वह ही हमारा वास्तविक अस्तित्व है| हम यह देह नहीं हैं, प्रभु की अनंतता हैं| उस अनंतता को ही प्रेम करें और उसी का ध्यान करें| यही शिव भाव है| उन सर्वव्यापी भगवान परम शिव में परम प्रेममय हो कर पूर्ण समर्पण करना ही उच्चतम साधना है, यही मुक्ति है, और यही लक्ष्य है| महासागर के जल की एक बूँद क्या महासागर से पृथक है? वह स्वयं भी महासागर ही है|
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निरंतर ब्रह्म चिंतन व स्वाध्याय में चित्त सदा रमा रहे| कूटस्थ में ब्रह्मज्योति निरंतर प्रज्ज्वलित रहे और अक्षर नादब्रह्म में हम लीन हो जाएँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ अक्तूबर २०१८

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