Wednesday 4 January 2017

शरणागति और समर्पण ...

शरणागति और समर्पण ...
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गुरुकृपा से आज इस विषय पर गहन चिंतन करने को मैं आतंरिक रूप से विवश हूँ .......
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जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त होने के लिए जन्म रहित परब्रह्म परमात्मा से एकाकार होना ही होगा| इसके अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है|
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परब्रह्म परमात्मा का जो साकार रुप मुझे अपनी अल्प और सीमित बुद्धि से समझ में आता है वह भगवान परमशिव का है, और निराकार रूप ॐकार का है| इन साकार और निराकार दोनों का आश्रय लेना ही होगा| बार बार निश्चय कर उनका निरंतर चिंतन और ध्यान करना होगा|
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गुरुकृपा से एक लघुमार्ग (Short cut) दिखाई दे रहा है| वह लघुमार्ग है .... गुरु की शरण मे रहो, यानि उन्हीं को कर्ता, भोक्ता और क्रिया बना लो| ऐसा संभव है अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार का गुरु में पूर्ण रूप से समर्पण द्वारा|
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पर अब तो गुरु भी कूटस्थ ब्रह्म हो गए हैं क्योंकि जो उनका प्रचलित चित्र है वह तो उनके शरीर का था, पर वे यह शरीर नहीं थे| वे तो परम चैतन्य थे, उनको मैं नाम-रूप में कैसे बाँध सकता हूँ? वे तो ज्योतिर्मय कूटस्थ ब्रह्म और प्रणव नाद रूप हैं, अतः मेरा समर्पण उन्हीं को है|
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ध्यान में जो कूटस्थ ज्योति निरंतर दिखाई देती है, और जो प्रणव नाद सुनाई देता है, वे ही मेरे इष्ट देव/देवी हैं, वे ही परमशिव हैं, वे ही विष्णु हैं, और वे ही मेरे सद्गुरु हैं|
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हे गुरुरूप परब्रह्म मैं आपकी शरण में हूँ, मेरा समर्पण स्वीकार करो| मैं आपके शरणागत हूँ|
मेरे सारे संचित और प्रारब्ध कर्म, उनके फल, और मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व आपको समर्पित है| मैं निरंतर आपका हूँ और आप मेरे हैं, मुझे अपनी शरण में ले लो|
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ॐ ॐ ॐ || शिव शिव शिव शिव शिव || ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
05 Jan.2016

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