Wednesday 4 January 2017

हम किसका ध्यान करें ? .....

हम किसका ध्यान करें ? .....
-------------------------
मेरे विचार से गहन ध्यान में कूटस्थ में दिखाई देने वाली विराट श्वेत ज्योति ही गायत्री मन्त्र के "सविता" देव हैं, वे ही परमशिव हैं, वे ही परम ब्रह्म हैं, वे ही नारायण हैं, वे ही आत्म-सूर्य और सभी तत्वों के तत्व हैं |
एक जिज्ञासा उठी है जिसे यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ .......
.
हमारा सौर मंडल हमारे भौतिक सूर्य से जीवन पाता है| जो भी भौतिक ऊर्जा हमें प्राप्त है वह हमारे सूर्य से ही है| पर इस सृष्टि में अनंत सूर्य हैं जिनके अपने अपने सौर मंडल हैं, जहाँ पता नहीं कैसे कैसे लोक होंगे|
.
कहते हैं कि सृष्टि ..... भौतिक, सूक्ष्म और कारण .... इन तीन आयामों में हैं| पर इनके मध्य भी अनेक आयामों में अन्य भी अनेक लोक निश्चित रूप से होंगे जो हमारी समझ से परे हैं|
.
भौतिक जगत भी पता नहीं कितने सारे होंगे| हम इस सौर मंडल में हैं जो हमारे भौतिक सूर्य के इर्दगिर्द है, पर अंतरिक्ष में तो हर तारा एक सूर्य है जिसके भी अनेक ग्रह-उपग्रह हैं| सृष्टि में भौतिक विश्व ही अनंत है, फिर सूक्ष्म जगत तो उससे भी बहुत बड़ा बताते हैं, और कारण जगत तो पता नहीं कितना विराट होगा जिस की कल्पना भी मनुष्य की क्षमता से परे है| देव-असुर आदि भी सर्वत्र होते होंगे|
.
ध्यान साधना में हम देश-काल (Time & Space) से परे होते हैं| हमारी चेतना अनंत में होती है जो हमारा वास्तविक घर है| वहाँ इस सूर्य का कोई महत्व नहीं है|
ध्यान साधना में जिस ज्योतिर्मय ब्रह्म के दर्शन हमें कूटस्थ में होते हैं, वे ही सविता देव हैं ..... ऐसी मेरी धारणा है|
.
सम्पूर्ण सृष्टि जिनसे आभाषित है, वे वही होंगे जिसके बारे में श्रुति भगवती कहती है ....

"न तत्र सूर्यो भांति न चन्द्र-तारकं
नेमा विद्युतो भान्ति कूतोऽयमग्नि |
तम् एव भान्तम् अनुभाति सर्वं
तस्य भासा सर्वम् इदं विभाति ||"
.
"हिरन्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्
तत् त्वं पूषन्न्-अपावृणु सत्य-धर्माय दृष्टये |"
.
"पूषन्न् अकर्ये यम सूर्य प्राजापत्य व्युह-रश्मीन् समूह तेजो
यत् ते रूपं कल्याणतमं तत् ते पश्यामि यो ऽसव् असौ पुरुषः सो ऽहम् अस्मि ||"
............................................................................
हमें उस आभासित ब्रह्म आत्मसूर्य का ही ध्यान करना चाहिए| वह ही हम हैं|
.
हे प्रभु, हे परमात्मा, मैं अपनी तुच्छ और अति अल्प बुद्धि से कुछ भी समझने में असमर्थ हूँ| मुझे इस द्वैत से परे ले चलो, अपनी पवित्रता दो, अपना परम प्रेम दो| इसके अतिरिक्त मुझे कुछ भी नहीं मालूम, और कुछ भी नहीं चाहिए|
.
"तुम हवाओं में बह रहे हो, झोंकों में मुस्करा रहे हो, सितारों में चमक रहे हो, हम सब के विचारों में नृत्य कर रहे हो, समस्त जीवन तुम्हीं हो| हे परमात्मा, हे गुरु रूप ब्रह्म, तुम्हारी जय हो|
.
ॐ तत्सत् | सोsहं | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

No comments:

Post a Comment