प्राचीन काल में कहते हैं कि एक ऐसा पत्थर पाया जाता था जिसके स्पर्श से
लोहा सोना हो जाता था| पता नहीं इसमें कितनी सच्चाई है| पर मुझे सचमुच एक
पारस पत्थर अड़तीस वर्ष पूर्व मिला था जो मिटटी से सोना बना देता है| मैं
वास्तव में बहुत अधिक भाग्यशाली हूँ| उस पारस पत्थर ने मुझे निहाल कर दिया
है|
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मेरे सद् गुरु महाराज ही वह पारस पत्थर हैं जिन्होनें मुझे मिटटी से सोना बना दिया है| उन्होंने मेरी अनेक बुराइयों को प्रभु-प्रेम में रूपांतरित कर दिया है| उनकी शक्ति इससे भी अधिक है जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता| उन्होंने अपनी कृपादृष्टि से अनेक शिष्यों को पारस पत्थर बनाया है|
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सूक्ष्म जगत से वे निरंतर मुझ पर अपनी दृष्टी रखे हुए हैं| मैं उनकी दृष्टी में हूँ अतः मुझे और क्या चाहिए? कुछ भी नहीं| उनकी एक नज़र ही काफी है, वह जिस पर पड़ जाती है वह निहाल हो जाता है|
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मैं उनके प्रेम का एक अनंत सागर हूँ जो स्वयं में तैरते हुए इस अहंकार को देख रहा है| कितनी मधुरता है उनके इस प्रेम में !!!
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मेरे सद् गुरु महाराज ही वह पारस पत्थर हैं जिन्होनें मुझे मिटटी से सोना बना दिया है| उन्होंने मेरी अनेक बुराइयों को प्रभु-प्रेम में रूपांतरित कर दिया है| उनकी शक्ति इससे भी अधिक है जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता| उन्होंने अपनी कृपादृष्टि से अनेक शिष्यों को पारस पत्थर बनाया है|
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सूक्ष्म जगत से वे निरंतर मुझ पर अपनी दृष्टी रखे हुए हैं| मैं उनकी दृष्टी में हूँ अतः मुझे और क्या चाहिए? कुछ भी नहीं| उनकी एक नज़र ही काफी है, वह जिस पर पड़ जाती है वह निहाल हो जाता है|
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मैं उनके प्रेम का एक अनंत सागर हूँ जो स्वयं में तैरते हुए इस अहंकार को देख रहा है| कितनी मधुरता है उनके इस प्रेम में !!!
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