यह सृष्टि नटराज का नृत्य है ......
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यह सृष्टि हमारे मन के विचारों और भावों का ही घनीभूत रूप है|
सन 1980 ई.में 'The Tao of Physics' नामक एक पुस्तक पढ़ी थी जिसके लेखक अमेरिका के एक प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री डा.फ्रित्जोफ़ केपरा थे| वह पुस्तक सन उन्नीससौ सत्तर और अस्सी के दशक में बहुत लोकप्रिय हुई थी| उस के अमेरिकन संस्करण पर नटराज का चित्र था| उन दिनों मैं कनाडा के वेंकूवर नगर (ब्रिटिश कोलंबिया) में गया हुआ था| वहाँ एक पुस्तकों की दूकान में भारतीय संस्कृति से सम्बंधित पुस्तकें देख रहा तो वह पुस्तक मुझे बड़ी आकर्षक लगी और मैनें खरीद ली| उस पुस्तक में लेखक ने भौतिक शास्त्र और गणित के माध्यम से भारतीय दर्शन को सिद्ध करने का प्रयास किया था| उस पुस्तक का सार यही था कि विपरीत गुणों से निर्मित यह सृष्टि नटराज का नृत्य है जिसमें कभी एक गुण हावी होता है तो कभी दूसरा| बाद में इसका भारतीय संस्करण भी छपा था|
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गहराई से चिंतन किया जाए तो वास्तव में यह सृष्टि नटराज का एक नृत्य मात्र ही है जिसमें निरंतर ऊर्जा खण्डों और अणुओं का विखंडन और सृजन हो रहा है| जो बिंदु है वह प्रवाह बन जाता है और प्रवाह बिंदु बन जाता है| ऊर्जा कणों की बौछार और निरंतर प्रवाह समस्त भौतिक सृष्टि का निर्माण कर रहे हैं| इन सब के पीछे एक परम चैतन्य है और उसके भी पीछे एक विचार है| समस्त सृष्टि परमात्मा के मन का एक स्वप्न या विचार मात्र है| वह परम चेतना ही भगवान परम शिव हैं और नित्य नवीन सृष्टि का विखंडन और सृजन ही भगवान नटराज का नृत्य है|
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ये हमारे विचार और हमारी चेतना ही है जो घनीभूत होकर सृष्ट हो रही है, क्योंकि हम परमात्मा के ही अंश हैं| अतः हमारे सब के विचार ही इस सृष्टि का निर्माण कर रहे हैं| जैसे हमारे विचार होंगे वैसी ही यह सृष्टि होगी| यह सृष्टि जितनी विराट है उतनी ही सूक्ष्म है| हर अणु अपने आप में एक ब्रह्मांड है| हम कुछ भी संकल्प या विचार करते हैं, उसका प्रभाव सृष्टि पर पड़े बिना नहीं रह सकता| इसलिए हमारा हर संकल्प शिव संकल्प हो, और हर विचार शुभ विचार हो|
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अपने परमशिव चैतन्य में हम रहें तो सब ठीक है अन्यथा सब गलत| ॐ ॐ ॐ ||
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यह सृष्टि हमारे मन के विचारों और भावों का ही घनीभूत रूप है|
सन 1980 ई.में 'The Tao of Physics' नामक एक पुस्तक पढ़ी थी जिसके लेखक अमेरिका के एक प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री डा.फ्रित्जोफ़ केपरा थे| वह पुस्तक सन उन्नीससौ सत्तर और अस्सी के दशक में बहुत लोकप्रिय हुई थी| उस के अमेरिकन संस्करण पर नटराज का चित्र था| उन दिनों मैं कनाडा के वेंकूवर नगर (ब्रिटिश कोलंबिया) में गया हुआ था| वहाँ एक पुस्तकों की दूकान में भारतीय संस्कृति से सम्बंधित पुस्तकें देख रहा तो वह पुस्तक मुझे बड़ी आकर्षक लगी और मैनें खरीद ली| उस पुस्तक में लेखक ने भौतिक शास्त्र और गणित के माध्यम से भारतीय दर्शन को सिद्ध करने का प्रयास किया था| उस पुस्तक का सार यही था कि विपरीत गुणों से निर्मित यह सृष्टि नटराज का नृत्य है जिसमें कभी एक गुण हावी होता है तो कभी दूसरा| बाद में इसका भारतीय संस्करण भी छपा था|
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गहराई से चिंतन किया जाए तो वास्तव में यह सृष्टि नटराज का एक नृत्य मात्र ही है जिसमें निरंतर ऊर्जा खण्डों और अणुओं का विखंडन और सृजन हो रहा है| जो बिंदु है वह प्रवाह बन जाता है और प्रवाह बिंदु बन जाता है| ऊर्जा कणों की बौछार और निरंतर प्रवाह समस्त भौतिक सृष्टि का निर्माण कर रहे हैं| इन सब के पीछे एक परम चैतन्य है और उसके भी पीछे एक विचार है| समस्त सृष्टि परमात्मा के मन का एक स्वप्न या विचार मात्र है| वह परम चेतना ही भगवान परम शिव हैं और नित्य नवीन सृष्टि का विखंडन और सृजन ही भगवान नटराज का नृत्य है|
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ये हमारे विचार और हमारी चेतना ही है जो घनीभूत होकर सृष्ट हो रही है, क्योंकि हम परमात्मा के ही अंश हैं| अतः हमारे सब के विचार ही इस सृष्टि का निर्माण कर रहे हैं| जैसे हमारे विचार होंगे वैसी ही यह सृष्टि होगी| यह सृष्टि जितनी विराट है उतनी ही सूक्ष्म है| हर अणु अपने आप में एक ब्रह्मांड है| हम कुछ भी संकल्प या विचार करते हैं, उसका प्रभाव सृष्टि पर पड़े बिना नहीं रह सकता| इसलिए हमारा हर संकल्प शिव संकल्प हो, और हर विचार शुभ विचार हो|
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अपने परमशिव चैतन्य में हम रहें तो सब ठीक है अन्यथा सब गलत| ॐ ॐ ॐ ||
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