Monday 9 January 2017

शीत ऋतु परमात्मा के ध्यान के लिए सर्वश्रेष्ठ है .....

आजकल शीत ऋतु परमात्मा के ध्यान के लिए सर्वश्रेष्ठ है| प्रकृति भी शांत है, न तो पंखा चलाना पड़ता है ओर न कूलर, अतः उनकी आवाज़ नहीं होती| कोई व्यवधान नहीं है| प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठते ही प्रकृति में जो भी सन्नाटे की आवाज सुनती है उसी को आधार बनाकर गुरु प्रदत्त बीज मन्त्र या प्रणव की ध्वनि को सुनते रहो|
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किसी भी मन्त्र के जाप की सर्वश्रेष्ठ विधि यह है कि जगन्माता की गोद में बैठकर उसे अपने आतंरिक चैतन्य में निरंतर सुनते रहो| कितना आसान काम कर दिया है करुणामयी माँ ने! आपको तो कुछ भी नहीं करना है, जब जगन्माता स्वयं आपके लिए साधना कर रही है| जो जगन्माता सारी प्रकृति का संचालन कर रही है, उसने जब स्वयं आपका भार उठा लिया है तब फिर आपको और क्या चाहिए? आपसे अधिक भाग्यशाली अन्य कोई नहीं है| किसी भी तरह का कर्ताभाव आना पतन का सबसे बड़ा कारण है|
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गुरु के अनुशरण या गुरु की सेवा का अर्थ है उस ब्राह्मी चेतना यानि कूटस्थ चैतन्य में निरंतर रहने का प्रयास जिसमें गुरू है| गुरु तो परमात्मा के साथ एक है, वे तो परमात्मा की चेतना में स्थित हैं, उनकी देह तो उनका एक वाहन मात्र है जो उन्होंने लोकयात्रा के लिए धारण कर कर रखा है| गुरु देह नहीं है, गुरु तो एक तत्व हैं, एक चैतन्य हैं| देह तो उनका एक साधन मात्र या कहिये कि प्रतीक मात्र है|
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सांसारिक रूप से हमें अपने धर्म और संस्कृति पर गौरव होना चाहिए| 'हिंदू' शब्द गौरव का प्रतीक है| जो स्वयं को हिंदू कहता है वह राष्ट्रवादी है, साम्प्रदायिक नहीं| हमें स्वयं को हिंदू कहलाने पर गौरवान्वित होना चाहिए तभी हम अपने धर्म की रक्षा कर पायेंगे| [पर सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ..... निरंतर परमात्मा का स्मरण और उनके चैतन्य में स्थिति| यही हमारे धर्म की शिक्षा है और यही हमारा धर्म है|
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आप सब दिव्य निजात्माओं को नमन | आप सब परमात्मा को समर्पित हों, परमात्मा आपके जीवन का केंद्रबिंदु हो, उसका परमप्रेम आपमें जागृत हो|

ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

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