Monday 9 January 2017

गुरु और संतों से सम्बन्धित एक रहस्य .....

गुरु और संतों से सम्बन्धित एक रहस्य .....
--------------------------------------------
एक उदाहरण के लिए मान लीजिये कि एक वन में एक तालाब है, जिसमें वन के अनेक प्राणी आकर अपनी प्यास बुझाते हैं| या मान लीजिये कि आप कहीं सुनसान राहों पर जा रहे हो और आप को बड़े जोर से प्यास लगी हो| अचानक आप के सामने एक तालाब आ जाता है जहाँ आप जलपान कर सकते हैं|
अब आप जल पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं तो आप स्वयं पर उपकार कर रहे हैं, जल पर नहीं| तालाब में अनेक प्राणी आकर अपनी प्यास बुझाते हैं, वे स्वयं का भला कर रहे हैं,तालाब का नहीं|
तालाब भी किसी पर अहसान नहीं दिखाता, उसे तो प्रसन्नता है कि प्यासे उसके पास आकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं| तालाब भी उसी की प्यास मिटा सकता है जिसको प्यास लगी हो| जिसमें प्यास ही नहीं हो उसका तालाब क्या भला कर सकता है?
तालाब कभी परवाह नहीं करता कि कौन उससे अपनी प्यास बुझा रहा है और कौन नहीं| कोई अपनी प्यास बुझाए तो ठीक और न बुझाए तो भी ठीक| तालाब अपने आप में मस्त है|
.
वैसे ही सद्गुरु और संत-महात्मा एक सरोवर यानि तालाब की तरह हैं जिनके पास आकर अनेक मुमुक्षु और जिज्ञासु अपनी आध्यात्मिक प्यास बुझाते हैं| संत और गुरु कभी परवाह नहीं करते कि कौन आता है और कौन नहीं| जो आये उसका भी भला और जो न आये उसका भी भला| गुरु व संत तो सबके हितैषी हैं| गुरु व संत के पास जाकर हम स्वयं पर अहसान कर रहे हैं, उन पर नहीं|
.
गुरु और संत उस विशाल वृक्ष की तरह हैं जिनकी छाया में जाकर हम कड़ी धूप से अपनी रक्षा करते हैं| उनकी छाया में जाकर हम स्वयं पर अहसान कर रहे हैं, उन पर नहीं|
वे किसी का भला नहीं कर रहे, हम स्वयं ही अपना भला कर रहे हैं| पर उनके पास वही जाएगा जो गर्मी और कड़ी धुप से त्रस्त है| जो त्रस्त नहीं है वह नहीं जाएगा और वृक्ष की छाया से वंचित रह जाएगा|
.
रहीम जी का एक दोहा सन १९५७- ५८ में हमारी छठी कक्षा की पाठ्य पुस्तक में था ----
'तरुवर सरवर संतजन चौथो बरसन मेह, परमारथ रे कारणा चारों धारी देह||'
अर्थात तरुवर (वृक्ष) सरोवर (तालाब) संतजन और मेह (बरसात) इन चारों ने परमार्थ के कारण ही देह धारण की है|
.
बोलिए सभी संतन की जय, भक्त और भगवान की जय|
नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव| ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
पौष कृ.१३ वि.सं.२०७२| 8 जनवरी.2016

No comments:

Post a Comment