Friday, 4 November 2016

जीवन से मैं स्वयं को पूर्णतः शत-प्रतिशत संतुष्ट पाता हूँ .....

जीवन से मैं स्वयं को पूर्णतः शत-प्रतिशत संतुष्ट पाता हूँ |
किसी भी तरह का कोई असंतोष नहीं है, कोई पछतावा नहीं है, कोई कामना नहीं है, और किसी से कुछ भी कैसी भी अपेक्षा नहीं है |
इस अल्प जीवन में जो कुछ भी हुआ वह परमात्मा की इच्छा से और परमात्मा के द्वारा ही सम्पादित हुआ है, और आगे भी परमात्मा द्वारा ही होगा |
मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है |
जो भी ईश्वर प्रदत्त अति अल्प संसाधन मेरे पास हैं वे मेरे लिए पर्याप्त हैं |
परमात्मा स्वयं मेरे योग-क्षेम का वहन कर रहे हैं |
अब बचा-खुचा जो भी जीवन है वह परमात्मा के चिंतन और ध्यान में ही व्यतीत करना चाहता हूँ |
जीवन का एकमात्र लक्ष्य परमात्मा ही है | अन्य कुछ भी नहीं है |
ॐ ॐ ॐ ||

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