Friday, 4 November 2016

राग-द्वेष और अहंकार मन के विकार हैं.....

राग-द्वेष और अहंकार मन के विकार हैं.....
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यदि मैं किसी के कुछ कहने से आहत होता हूँ तो दोष मेरा ही है, उस व्यक्ति का नहीं| मेरे अंतर में कोई घाव था जो उस व्यक्ति के द्वारा अनजाने में ही छूआ गया| आवश्यकता उस घाव का उपचार करने की है न कि आहत होकर स्वयं को दुखी करने की| स्वयं को सुधारना ही बुद्धिमता और कल्याणकारी है|
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हमारी निम्न प्रकृति हमें हमारे विकास से निरंतर रोकती है, अन्यथा आत्मा जागृत होते ही परमात्मा को पाने की अभीप्सा से भर जाती है| यह निम्न प्रकृति ही विक्षेप उत्पन्न करती है और यही माया के आवरण का कारण है| इससे मुक्त होना ही मुक्ति है|
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असत्य और अन्धकार की शक्तियों द्वारा हमारी अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं| विगत में इससे भी कई गुणा अधिक प्रहार हुए हैं| कई बार हम असहाय अनुभूत करते हैं| यह आशा ही हमारा सहारा है कि निश्चित रूप से सत्य की विजय होगी व असत्य और अन्धकार की शक्तियाँ पराभूत होंगी|
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परमात्मा में आस्था बनाए रखें, अन्याय का विरोध करते रहें और अपने निज विवेक के प्रकाश में हर कार्य करें| यही सर्वश्रेष्ठ है जो हम कर सकते हैं|
सृष्टि के रहस्यों को समझना मानव बुद्धि द्वारा असम्भव है| धर्म और अधर्म का निर्णय भी ईश्वर की कृपा से ही कर सकते हैं|
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हे सर्वव्यापी परमात्मा परम शिव हमारी रक्षा करो| हम आपकी शरणागत हैं| त्राहिमाम् त्राहिमाम् |
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

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