भारत में दुर्भाग्य से जातिवाद एक राजनीतिक अस्त्र हो गया है जिसके लिए
कुछ राजनेता गृहयुद्ध तक छेड़ने को तैयार बैठे हैं| यदि जातिगत आरक्षण
समाप्त हो जाए और सरकारी पन्नों में जाति के उल्लेख पर प्रतिबन्ध लग जाए तो
जातिप्रथा अति शीघ्र समाप्त हो जायेगी| वर्त्तमान राजनीतिक व्यवस्था ही
जातिवाद को प्रोत्साहित करती है|
जिन्हें अगड़ा वर्ग कहते हैं वह इस समय सर्वाधिक पिछड़ा है| उदाहरण के लिए ब्राह्मण जाति इस समय सबसे अधिक पिछड़ी हुई जाति है| वह अतिपिछड़ों से भी अधिक पिछड़ी हुई है| ब्राह्मणों में इस समय सबसे अधिक गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी है| ऐसे ही कुछ अन्य जातियां भी हैं, आरक्षण व्यवस्था ने जिनकी कमर तोड़ दी है, और जिनके समाज में एक घोर निराशा व्याप्त है|
प्राचीन काल की वर्ण-व्यवस्था का वर्त्तमान जाति प्रथा से कोई सम्बन्ध नहीं है| जो स्वधर्म की साधना कर रहे हैं, उन्हें सदा प्रोत्साहित करना चाहिए|
यज्ञोपवीत, तिलक, माला, गुरुमंत्र, सात्विक आहार, उच्च विचार और आध्यात्मिक साधना .... ये सब हमारी संस्कृति के अंग हैं|
जातिगत राजनीति एक अभिशाप है जो समाज में घृणा फैला रही है| इसका अंत कभी ना कभी तो अवश्य ही होगा|
जिन्हें अगड़ा वर्ग कहते हैं वह इस समय सर्वाधिक पिछड़ा है| उदाहरण के लिए ब्राह्मण जाति इस समय सबसे अधिक पिछड़ी हुई जाति है| वह अतिपिछड़ों से भी अधिक पिछड़ी हुई है| ब्राह्मणों में इस समय सबसे अधिक गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी है| ऐसे ही कुछ अन्य जातियां भी हैं, आरक्षण व्यवस्था ने जिनकी कमर तोड़ दी है, और जिनके समाज में एक घोर निराशा व्याप्त है|
प्राचीन काल की वर्ण-व्यवस्था का वर्त्तमान जाति प्रथा से कोई सम्बन्ध नहीं है| जो स्वधर्म की साधना कर रहे हैं, उन्हें सदा प्रोत्साहित करना चाहिए|
यज्ञोपवीत, तिलक, माला, गुरुमंत्र, सात्विक आहार, उच्च विचार और आध्यात्मिक साधना .... ये सब हमारी संस्कृति के अंग हैं|
जातिगत राजनीति एक अभिशाप है जो समाज में घृणा फैला रही है| इसका अंत कभी ना कभी तो अवश्य ही होगा|
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