(प्रश्न) : हमारा स्वधर्म क्या है?
(उत्तर) : यदि श्रीमद्भगवद्गीता का बहुत गहराई से स्वाध्याय करें तो समझ में आता है कि शरणागति द्वारा भगवान को समर्पण ही हमारा स्वधर्म है। हम यह नश्वर देह नहीं, एक शाश्वत आत्मा हैं। आत्मा का स्वधर्म -- परमात्मा की उपासना और परमात्मा को अहैतुकी समर्पण है। इधर उधर से गीता के दो-चार श्लोक पढ़ने से काम नहीं चलेगा। पूरी गीता का ही स्वाध्याय करना होगा।
जिस क्षण तक इस नश्वर देह में मेरी अंतिम सांस चलेगी, उस क्षण तक मैं श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताए हुए स्वधर्म पर अडिग रहूँगा।
ReplyDeleteमेरे आदर्श अंशुमाली, मार्तंड, आदित्य, भगवान भुवनभास्कर हैं। जिस मार्ग पर वे कमलिनीकुलवल्लभ चलते हैं, उस मार्ग पर उन्हें कहीं किंचित भी तिमिर का कोई अवशेष नहीं मिलता। वे सदा प्रकाशमान और गतिशील हैं। परमात्मा की परम ज्योति में मैं स्वयं को समर्पित करता हूँ। ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० नवंबर २०२५