राधे-गोविंद जय राधे-राधे ---
श्रीराधाकृष्ण मुझ में हैं, या मैं श्रीराधाकृष्ण में हूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा। प्रकृति और पुरुष दोनों ही साथ साथ नृत्य कर रहे हैं। श्रीकृष्ण पुरुष हैं जो यह समस्त विश्व बन कर आकाश रूप में सर्वत्र समान रूप से व्याप्त हैं। श्रीराधा प्रकृति हैं, जिन्होंने प्राण रूप में समस्त सृष्टि को धारण कर रखा है। उनकी लीलाभूमि सर्वत्र है। वे ही मेरे प्राण हैं। मैं उनके साथ एक हूँ। ॐ तत्सत् !!
राधे-गोविंद जय राधे-राधे, राधे राधे राधे-राधे॥
पुरुष और प्रकृति नाचे साथ साथ,
गोविंद की जय जय, राधे की जय जय
पुरुष की जय जय, प्रकृति की जय जय
राधे-राधे राधे-राधे, राधे-गोविंद जय राधे-राधे
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कृपा शंकर
झुंझुनूं (राजस्थान)
१० नवंबर २०२५
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