केवल वेदान्त-वासना बनी रहे, अन्य सारे भाव तिरोहित हो जायें। जब भी कुछ लिखने की प्रेरणा ईश्वर से मिलेगी तब लिखूंगा अवश्य। अन्यथा अपने मौन में सच्चिदानंद की चेतना में रहना ही मेरी साधना है। एक शक्ति मुझे परमात्मा की ओर बढ़ने की प्रेरणा निरंतर देती रहती है, वही मुझसे साधना कराती है। बहुत दूर रहने वाले कुछ निष्ठावान अति उन्नत साधक/साधिकाएँ कभी कभी मुझसे संपर्क कर अपने अनुभवों पर चर्चा करते हैं, तब मुझे बड़ा प्रोत्साहन मिलता है। साधना में कुछ नकारात्मक शक्तियाँ भी व्यवधान करती हैं, जिनसे रक्षा स्वयं भगवान करते हैं। सार की बात यही है कि परमात्मा की अभीप्सा ही शाश्वत है, आकांक्षाएँ नश्वर हैं। परमात्मा से एकत्व का भाव बना रहे। मैं, मेरे गुरु, और सच्चिदानंद परमब्रह्म परमात्मा -- तीनों एक हैं; उनमें कहीं कोई भेद नहीं है।
Sunday, 16 November 2025
केवल वेदान्त-वासना बनी रहे, अन्य सारे भाव तिरोहित हो जायें।
इन दिनों कुछ भी लिखने का मानस नहीं बन रहा है। फेसबुक पर हर विषय के अनेक प्रखर राष्ट्रभक्त विद्वान और लेखक हैं। इसलिए इस मंच को कभी छोड़ा नहीं। विश्व की वर्तमान स्थिति और वैश्विक घटनाक्रम से मैं भलीभांति अवगत हूँ। स्वधर्म और आध्यात्म को भी समझता हूँ। अपना स्वधर्म तो किसी भी परिस्थिति में मैं नहीं छोडूंगा, और उसका पालन अंत समय तक करूंगा। गीता में भगवान के निम्न वचन कभी पथभ्रष्ट नहीं होने देते ---
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥२:४०॥"
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३:३५॥"
"यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः।
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते॥६:२२॥"
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
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यह संसार अब रहने योग्य नहीं रहा है। अवशिष्ट अति अल्प जीवन परमात्मा के चिंतन, मनन, भजन, निदिध्यासन, और ध्यान में ही बीत जाये। यही मेरी प्रार्थना है। सभी को नमन।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ नवंबर २०२५
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