Sunday, 16 November 2025

जब धर्म ही नहीं रहेगा तो जय किसकी होगी? ---

 जब धर्म ही नहीं रहेगा तो जय किसकी होगी? ---

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कहते हैं -- "यतो धर्मस्ततो जयः"। लेकिन जब धर्म ही नहीं रहेगा तो जय किसकी होगी? इस संकट की घड़ी में हमारे राष्ट्र भारत की रक्षा आतताइयों से हो। हमारा जीवन ही जब नहीं रहेगा तो राष्ट्र और धर्म की रक्षा हम कैसे करेंगे? इसका एक ही समाधान है कि जो मृत्यु वे हमें देना चाहते हैं, वह मृत्यु हम उन्हें ही प्रदान करें। ऐसा करते समय हमारे में किसी भी तरह का क्रोध और घृणा न हो। हर समय हम निरंतर प्रेममय ही रहें।
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जीवन बहुत छोटा है, बुद्धि अति अल्प और सीमित है। कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। लेकिन कितना भी घना संकट हो, कोई घबराने की आवश्यकता नहीं है। भगवान में श्रद्धा और विश्वास रखें। अपना पूर्ण प्रेम उन्हें दें। भगवान के पास सब कुछ है पर एक चीज नहीं है, जिसके लिए वे भी तरसते हैं, वह है हमारा परम प्रेम। जब हम उन्हें अपना पूर्ण प्रेम देंगे तो उनकी भी परम कृपा हम पर अवश्य ही होगी।
भगवान ने गीता में वचन दिया है --
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥१८:५८॥"
अर्थात् -- "मच्चित्त होकर तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे; और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे।"
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥
अर्थात् -- "सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो॥
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कितना बड़ा वचन दे दिया है भगवान ने! और क्या चाहिए? यह सारे रहस्यों का रहस्य है, इस से बड़ा कोई दूसरा रहस्य नहीं है। जीवन के जो भी कार्य हम करें, वे भगवान की प्रसन्नता के लिए ही करें, न कि अहंकार की तृप्ति के लिये। धीरे धीरे अभ्यास करते करते हम भगवान के प्रति इतने समर्पित हो जाएँ कि स्वयं भगवान ही हमारे माध्यम से कार्य करने लगें। हम उनके एक उपकरण मात्र बन जाएँ। कहीं कोई कर्ताभाव ना रहे, एक निमित्त-मात्र ही रहे| यह सबसे बड़ा आध्यात्मिक रहस्य और मुक्ति व विजय का मार्ग है।
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भगवान कहते हैं --
"तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् |
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्॥११:३३॥"
अर्थात् -- इसलिये तुम युद्ध के लिये खड़े हो जाओ, और यश को प्राप्त करो; तथा शत्रुओं को जीतकर धनधान्य से सम्पन्न राज्य को भोगो। ये सभी मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए हैं, हे सव्यसाचिन्, तुम निमित्तमात्र बन जाओ॥"
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हर समय परमात्मा की स्मृति बनी रहे। उन्हें हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रेम दें। हमारे पास देने के लिए अन्य है ही क्या? सब कुछ तो उन्हीं का है।
हे भगवन, आपकी जय हो। आपका दिया हुआ यह अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) सब कुछ बापस आपको समर्पित है। मुझे आप के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं चाहिये। हम अपने धर्म और राष्ट्र की रक्षा करेंगे।
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ॐ तत्सत् !ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
झुंझुनूं (राजस्थान)
१३ नवंबर २०२५

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