गर्भाधान संस्कार ---
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सनातन हिन्दू धर्म को मान्यता प्राप्त विद्यालयों में पढ़ाना कानूनी रूप से वर्जित है, इसलिये हिंदुओं को धर्म-शिक्षा के अभाव में अपने धर्म का ज्ञान नहीं है। हिन्दू धर्म में सौलह संस्कारों का बड़ा महत्व है, उनका ज्ञान न होना भी हमारी अज्ञानता यानि सांस्कृतिक पतन का एक कारण है। हिन्दू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक किए जाने वाले सौलह महत्वपूर्ण संस्कार हैं, जो जीवन को सही दिशा देते हैं। ये हैं -- गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह और अंत्येष्टि शामिल हैं।
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इनमें गर्भाधान संस्कार सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। स्त्री-पुरुष के सहवास के समय जब पुरुष का शुक्राणु और स्त्री का अंडाणु मिलते हैं तब सूक्ष्म जगत में एक विस्फोट होता है। उस समय दोनों की जैसी भी भावना होती है, वैसी ही आत्मा आकर गर्भस्थ हो जाती है। इसमें स्त्री के विचार अधिक प्रभावी होते हैं। प्राचीन भारत ने इतनी महान आत्माएँ उत्पन्न कीं इसका कारण यह था कि उस समय लोगों को इन संस्कारों का ज्ञान था। अनेक महान आत्माएँ इस समय जन्म लेने की प्रतीक्षा में हैं, लेकिन वे जन्म नहीं ले पा रही हैं, क्योंकि उनको सही माता-पिता नहीं मिल रहे हैं। मेरे इस शरीर की आयु ७९ वर्ष की हो गयी है, अपनी युवावस्था में मैं बहुत घूमा-फिरा हूँ, विश्व के अनेक देशों की यात्रा मैंने की है, और इस पृथ्वी की पूरी परिक्रमा भी की है, लेकिन मुझे अपने पूरे जीवन काल में केवल दो हिन्दू ब्राह्मण दंपत्ति ऐसे मिले हैं जिन्होंने गर्भाधान संस्कार से संतान उत्पन्न की और धर्म का ज्ञान उन्हें दिया। एक तो सज्जन उड़ीसा के, और दूसरे सज्जन पूर्वी उत्तर प्रदेश के थे। गर्भाधान संस्कार की प्रक्रिया बहुत अधिक महत्वपूर्ण है।
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संतान उत्पन्न करने से पूर्व स्त्री-पुरुष को कुछ महीनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और परमात्मा की साधना करनी चाहिए। फिर देवी/देवताओं व पूर्वजों से मानसिक रूप से आशीर्वाद लेकर तन और मन की पवित्रता के साथ शुभ मुहूर्त में संकल्पपूर्वक गर्भाधान करना चाहिये। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संतान स्वस्थ, शक्तिशाली और गुणी हो। आप जैसी भी संतान उत्पन्न करना चाहें वैसी ही संतान उत्पन्न कर सकते हैं। माता-पिता को शांतिपूर्ण व आनंदित रहना चाहिए और पवित्र विचारों को धारण करना चाहिये। यह संतान के चरित्र और स्वभाव को प्रभावित करता है। संतान के गुणों का निर्माण उनको जन्म देने से पूर्व ही आप कर सकते हैं।
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वैसे हिंदुओं के साथ बहुत अधिक अन्याय हो रहा है। वे अपने धर्म की शिक्षा अपने विद्यालयों में अपने बच्चों को नहीं दे सकते। उनके मंदिर सेकुलर सरकारों के आधीन हैं, जो अधर्म है। मंदिरों की कमाई हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए होनी चाहिये, लेकिन वह मौलवियों और पादरियों को वेतन के रूप में दी जाती है। हज यात्रा के लिए भी हिन्दू मंदिरों की कमाई दी जाती है, जो अधर्म है। पहले हर बड़े मंदिर के साथ एक गुरुकुल, व्यायामशाला और गौशाला होती थी। आजकल यह असंभव है क्योंकि हिन्दू मंदिरों की सरकारी लूट ब्रिटिश काल से ही हो रही है। उससे पूर्व नवाब और बादशाह लोग मंदिरों का विध्वंश कर उनकी संपत्ति लूट लेते थे। स्वयं भगवान ही रक्षा कर सकते हैं। धर्म की रक्षा हो, अधर्म का नाश हो।
हरिः ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ नवंबर २०२५
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