(प्रश्न) : भारत में अल्प-संख्यक, धर्म-निरपेक्ष, सांप्रदायिक, पिछड़ा और अति-पिछड़ा होने का मापदण्ड क्या है?
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सबसे बड़ा प्रश्न तो यह है कि अल्पसंख्यक कौन है?
भारत में यदि मजहब के आधार पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक होते हैं तो "यहूदी" और "पारसी" असली अल्पसंख्यक हैं। भारत में यहूदियों की संख्या एक हज़ार से भी कम है। भारत में पारसी मजहब के अनुयायी भी एक लाख से कम हैं। भारत में यहूदी और पारसी मतानुयायिओं को "अल्पसंख्यक क्यों नहीं माना जाता ?
जो नास्तिक हैं वे भी मज़हब के आधार पर अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं। नास्तिकों को अल्पसंख्यक क्यों नहीं माना जाता?
जो किन्नर यानि हिंजड़े हैं उनका भी अपना अलग ही मज़हब होता है। मज़हब के आधार पर वे अल्पसंख्यक क्यों नहीं हैं?
और भी अनेक नगण्य मजहबों के लोग भारत में रहते हैं। क्या वे अल्पसंख्यक नहीं हैं?
भारत में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की अवधारणा वास्तव में एक पाखण्ड और धोखा है। ऐसे ही पिछड़ा और अति-पिछड़ा आदि की अवधारणाएं भी धोखा है। धन्यवाद।
१५ नवम्बर २०२५
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