एक ग्रह है जो सबसे बड़ा है। यदि वह अनुकूल हो तो अन्य सारे प्रतिकूल ग्रह उसके सामने विफल हैं। कितने भी मारकेश हों, कितनी भी भयावह परिस्थिति हो, हम हजारों तलवारों के बीच से खरोंच तक आये बिना सुरक्षित निकल सकते हैं, यदि उस ग्रह की कृपा हो। उस ग्रह का नाम है -- भगवान का "अनुग्रह"।
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"जितने तारे गगन में, उतने शत्रु होंय। कृपा होय रघुनाथ की, बाल न बाँका होय॥"
भगवान की हम पर परम कृपा हो, तो वे स्वयं हमारा योगक्षेम देखते हैं।
भगवान कहते हैं --
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥९:२२॥"
अर्थात् -- अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ॥"
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क्यों न हम भगवान का इतना चिंतन करें की वे स्वयं ही हमारी चिंता करना आरंभ कर दें? हम उनकी शरणागत हैं। उनका स्वयं का वचन है --
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥"
अर्थात् -- सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो॥
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वाल्मीकि रामायण में उनका स्पष्ट आश्वासन है --
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम॥"
अर्थात् - जो एक बार भी मेरी शरण में आकर ‘मैं तुम्हारा हूँ’ ऐसा कहकर रक्षा की याचना करता है, उसे मैं सम्पूर्ण प्राणियों से अभय कर देता हूँ – यह मेरा व्रत है।
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
४ फरवरी २०२५
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