Wednesday, 4 December 2024

समर्पण ---

 समर्पण ---

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भगवान का आकर्षण बड़ा प्रबल है, जो किसी के रोके रुक नहीं सकता। मेरे जीवन के साधना पक्ष में कुछ भी छिपा हुआ नहीं है। पूर्व जन्म की एक स्मृति है। पूर्व जन्म के उतरार्ध अंतिम काल में एक विदेशी धरती पर एक हिन्दू सन्यासी का परमप्रेममय प्रवचन सुना और प्रभावित होकर उनसे दीक्षा ली। फिर अपने अवशिष्ट कर्मफलों को भोगने के लिए यह जन्म मिला। इस जन्म में लगभग ३२ वर्ष की आयु में बड़े ही चमत्कारिक और अलौकिक ढंग से वह स्मृति जागृत हुई और मैंने उनका अनुसरण आरंभ कर दिया। अनेक बार जीवन में कई चमत्कार और अलौकिक घटनाएँ हुईं, जो व्यक्तिगत हैं।
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भगवान जितना और जैसे भी इस जीवन को चला रहे हैं, उससे मुझे कोई शिकायत नहीं है। उनका जीवन है, वे इसे कैसे भी जीयें। अभीप्सा और तड़प है उन्हें पाने की, जिसे हर कोई नहीं समझ सकता। उनकी ओर से एक सकारात्मक आश्वासन है, वही मेरे जीवन का सबसे बड़ा और एकमात्र धन है। वे पूर्व जन्म के गुरु ही इस जन्म में भी मेरे मार्गदर्शक गुरु हैं। उनको कभी देखा नहीं लेकिन वे हर समय मेरे साथ हैं। जैसे भी वे चाहेंगे, उसी तरह यह वाहन चलता रहेगा।
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क्रियायोग, और कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान ही मेरी उपासना है। जो पुरुषोत्तम हैं, वे ही परमशिव हैं, वे ही श्रीहरिः हैं, और वे ही परमब्रह्म परमात्मा हैं। भगवान कहीं दूर नहीं है। जहां भी मैं हूँ, वहीं भगवान हैं, और दूसरे शब्दों में जहां भी भगवान हैं, वहीं मैं हूँ। अब तो सब कुछ भगवान को समर्पित कर दिया है। जैसा वे चाहें वैसा ही करें। मेरी कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है। जैसी उनकी इच्छा है वैसी ही मेरी इच्छा है। अब मैं और मेरा कुछ नहीं है। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ दिसंबर २०२२

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