जिनकी रुचि ब्रह्मविद्या, वेदान्त और ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने की है वे उपनिषदों व भगवद्गीता का स्वाध्याय, और ध्यान-साधना का आरंभ किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय विद्वान आचार्य के मार्गदर्शन में आरंभ कर दें। फेसबुक पर किसी को ब्रह्मज्ञान नहीं मिल सकता।
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ध्यान-साधना और ब्रह्मविद्या एक-दूसरे के पूरक हैं। उपनिषदों के स्वाध्याय का आरंभ ईशावास्योपनिषद से होता है। यह आचार्य के विवेक पर निर्भर है कि आगे का क्रम क्या हो। साथ-साथ ध्यान भी सीखना और करना होगा। ब्रह्मनिष्ठ सिद्ध आचार्य गुरु की अनुकंपा का होना अनिवार्य है।
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केवल पुस्तकों के स्वाध्याय से कुछ नहीं होगा। मैंने रमण महर्षि, स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामतीर्थ के सम्पूर्ण साहित्य का बहुत ध्यान से स्वाध्याय किया है। वेदान्त पर जितना भी साहित्य बाजार में आसानी से मिल सकता था, वह सब खरीद कर अध्ययन किया है। इससे पूर्व रामचरितमानस और सम्पूर्ण महाभारत का अध्ययन किया था। गीता को समझने के लिए तीन तीन प्रसिद्ध भाष्य साथ में रखकर पढ़ता था --- शंकर भाष्य, स्वामी चिन्मयानंद का भाष्य, और श्री भूपेन्द्रनाथ सान्याल का लिखा भाष्य। (ये तीनों ही अद्भुत हैं)
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लेकिन तत्व की बात तभी समझ में आई जब मैंने श्री श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की परंपरा में दीक्षा लेकर क्रियायोग व अन्य संबन्धित ध्यान साधनाओं का अभ्यास करना आरंभ किया। अब भी ध्यान साधना करता हूँ, क्योंकि भगवान की भक्ति, गीता का स्वाध्याय, शिवपूजा, और परमशिव का ध्यान मेरा स्वभाव और जीवन है। अब और कुछ भी पढ़ने की इच्छा नहीं है। बाकी बचा जीवन ध्यान साधना में ही बीत जायेगा।
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आप सब योगानंदमय परमशिवस्वरूप सर्वव्यापी महान आत्माओं को नमन॥
आत्मस्वरूप जो आप हैं वह ही मैं हूँ। आप को किया हुआ नमन मुझे स्वयं को भी नमन है। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ दिसंबर २०२४
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