अपनी चेतना के उच्चतम बिन्दु पर रहें। वहीं से नीचे उतर कर इस भौतिक देह के माध्यम से साधना करें, और पुनश्च: उच्चतम पर लौट जायें। उच्चतम पर ही परमशिव पुरुषोत्तम की अनुभूति होती है।
यह मनुष्य देह भगवान द्वारा दिया हुआ एक साधन है जिसे स्वस्थ रखें, क्योंकि इसी के माध्यम से हम आत्म-साक्षात्कार कर सकते हैं। शब्दजाल में न फँसें। अपनी अनुभूति स्वयं करें। कोई अन्य नहीं है।
मैं समस्त दैवीय शक्तियों, सप्त चिरंजीवियों, सिद्ध योगियों और तपस्वी महात्माओं का आवाहन और प्रार्थना करता हूँ कि उनके आध्यात्म-बल से भारत में एक ब्रह्मशक्ति का तुरंत प्राकट्य हो। भारत के सभी आंतरिक और बाह्य शत्रुओं का नाश हो। समय आ गया है -- "इस राष्ट्र भारत में धर्म की पुनःस्थापना और वैश्वीकरण हो।"
समय बहुत कम है। सर्वदा कूटस्थ चैतन्य/ब्राह्मीस्थिति में रहें। हर साँस के साथ अजपाजप, व कूटस्थ में प्रणव का निरंतर मानसिक जप हो। कृपा शंकर ४ दिसंबर २०२४
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