वर्तमान में चर्चा के लिए अब कोई विषय ही नहीं बचा है ---
.
समयाभाव के कारण अब से मैं किसी भी तरह की आध्यात्मिक साधना या उपासना की कोई बात किसी से भी नहीं करना चाहता। चर्चा के लिए कोई आध्यात्मिक विषय बचा ही नहीं है। अच्छे उन्नत साधकों से कभी यदि सत्संग हुआ तो उनके साथ सामूहिक रूप से सर्वव्यापी अनंत कूटस्थ ब्रह्म परमशिव का ध्यान ही करूंगा।
.
वास्तव में मैं कोई साधना नहीं करता। मुझे निमित्त बनाकर भगवती स्वयं ही प्राणतत्व के रूप में परमशिव की साधना कर रही हैं। उन्होने ही पञ्चप्राणों, कर्मेन्द्रियों, ज्ञानेन्द्रियों, उनकी तन्मात्राओं व आत्मा को जीवंत कर रखा है। जिस दिन वे परमशिव से संयुक्त हो जाएंगी, उस दिन यह जीवन मुक्त हो जाएगा। वे भगवती भी अनेक रूपों में आती हैं। उनकी जय हो।
.
भगवान की परम कृपा के बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। भगवान ही स्वयं को कभी मातृरूप में, कभी पितृरूप में अपनी अनुभूति कराते रहते हैं। कई संत-महात्माओं की भी परम कृपा मुझ अकिंचन पर है। कई ऐसी माताएँ भी कृपा कर के मेरे संपर्क में रहती हैं जिनकी भक्ति अनुपम है। उनकी कोई बराबरी नहीं कर सकता। मैं अपनी सम्पूर्ण चेतना और अपना सम्पूर्ण अस्तित्व भगवान को समर्पित करता हूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ दिसंबर २०२३
No comments:
Post a Comment