यह सृष्टि परमात्मा की है, जिनका मैं शाश्वत आत्मा एक निमित्तमात्र उपकरण हूँ।
मेरा स्वधर्म क्या है, और उसे कैसे निभाना है, इसका मुझे पता है। इस जीवन के अंतकाल तक और उसके पश्चात भी मैं सदा सकारात्मक रूप से परमात्मा की चेतना में रहता हुआ उनके प्रकाश में वृद्धि ही करूँगा। इससे अधिक जो कुछ भी करना है वह मेरे प्रभु स्वयं करेंगे।
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मेरे प्रभु कोई व्यक्ति नहीं, यह अनंत विराट पूर्णता है जो स्वयं यह सृष्टि बन गए हैं। मुझे घेरे हुये मेरे हर ओर वे ही हैं। वे ही इन नासिकाओं से ली जा रही सांसें, इन आँखों की ज्योति, और इस हृदय की धडकन हैं। वे ही रक्त बनकर इस देह में बह रहे हैं। वे ही मेरे प्राण और मेरी चेतना हैं। मैं उनका एक संकल्प मात्र हूँ; सम्पूर्ण अस्तित्व वे ही हैं।
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जब परमात्मा को पाने की अभीप्सा और भक्ति जागृत हो जाये तब एकांत की निःस्तब्धता में भगवान से प्रार्थना कीजिये, निश्चित रूप से उत्तर मिलेगा। आपकी क्षमता और पात्रता के अनुसार भगवान मार्गदर्शन अवश्य करेंगे। यह स्वयं भगवान का आश्वासन है गीता में। अपनी श्रद्धा और विश्वास को बनाए रखें।
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ दिसंबर २०२२
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