हे भगवन, हे परमात्मा, हे पुरुषोत्तम, आपको नमन !! आप के कूटस्थ सूर्यमण्डल का आवरण बहुत अधिक ज्योतिर्मय है, जिसका भेदन करने में मैं असमर्थ हूँ। आपके स्वरूप का बोध मुझ अकिंचन को नहीं हो रहा है। आप अपना दर्शन भी दो। मेरी अंतर्दृष्टि आपके ज्योतिर्मय आवरण का भेदन करने में असमर्थ है। मेरा चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान इस समय कुछ भी काम नहीं आ रहा है। हे सत्यस्वरूप, अपने आवरण को हटाइये, मैं प्रतीक्षारत हूँ। ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ दिसंबर २०२४
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