अंतस्थ परमात्मा को विस्मृत कर देना - आत्महत्या और ब्रह्महत्या का पाप है ---
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भगवान को भूलना ब्रह्महत्या का पाप है जो सबसे बड़ा पाप होता है। यह किसी ब्रह्मनिष्ठ महात्मा की हत्या कर देने के बराबर है। मेरे कूटस्थ हृदय में सच्चिदानन्द ब्रह्म, स्वयं पुरुषोत्तम भगवान नारायण बिराजमान हैं। करुणा और प्रेमवश उन्होंने मुझे अपने स्वयं के हृदय में स्थान दे रखा है। उनको यदि मैं विस्मृत कर देता हूँ, तो क्या यह आत्महत्या और ब्रह्महत्या नहीं है? भगवान को भूलना उनकी हत्या करना है।
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मेरा इस संसार में जन्म ही ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के लिए हुआ था। लेकिन भटक कर मैं एक अनाड़ी और मूर्ख मात्र ही बन गया था। करुणा और प्रेमवश कृपा कर के स्वयं भगवान ने मेरे लिए मेरे स्थान पर स्वयं ही स्वयं की साधना की और अभी भी कर रहे हैं। प्रेमवश वे स्वयं ही मुझे सन्मार्ग पर ले आए हैं। उनके बिना मैं शून्य हूँ।
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पारिवारिक, सामाजिक व सामुदायिक सेवा कार्य हमें करने चाहियें क्योंकि इनसे पुण्य मिलता है, पर इनसे आत्म-साक्षात्कार नहीं होता। आजकल गुरु बनने और गुरु बनाने का भी खूब प्रचलन हो रहा है। गुरु पद पर हर कोई आसीन नहीं हो सकता। एक ब्रह्मनिष्ठ, श्रौत्रीय और परमात्मा को उपलब्ध हुआ महात्मा ही गुरु हो सकता है, जिसे अपने गुरु द्वारा अधिकार मिला हुआ हो।
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन! ॐ तत्सत्!
कृपा शंकर
२५ फरवरी २०२२
पाप और पुण्य ---
ReplyDeleteजब हम परमात्मा की चेतना में होते हैं, तब हमारे माध्यम से परमात्मा जो भी कार्य करते हैं, वह पुण्य होता है।
जब हम राग-द्वेष, लोभ और अहंकार के वशीभूत होकर कुछ भी कार्य करते हैं, वह पाप होता है।