Monday 28 February 2022

हे प्रभु, मेरी भक्ति, अभीप्सा, और समर्पण में पूर्णता दो ---

 जब तक अत्यधिक आवश्यक न हो तब तक अब कहीं भी आना-जाना, और किसी से भी मिलना-जुलना लगभग बंद ही कर रहा हूँ। जीवन में अब परमात्मा के साथ ही निरंतर सत्संग चल रहा है जो मेरे लिए पर्याप्त है। अन्य किसी के संग की अब कोई आवश्यकता नहीं रही है। इस शरीर के जन्म से पूर्व सिर्फ परमात्मा ही मेरे साथ थे, और इस नश्वर देह की मृत्यु के बाद भी सिर्फ परमात्मा ही निरंतर मेरे साथ सदा रहेंगे। उनका साथ शाश्वत है। उनका सत्संग पर्याप्त है। वे ही माता-पिता, भाई-बहिन, सभी संबंधियों और शत्रु-मित्रों के रूप में आये। जीवन में माता-पिता, भाई-बहिनों, सभी संबंधियों, और मित्रों आदि से जो भी प्रेम मिला वह परमात्मा का ही प्रेम था जो उनके माध्यम से व्यक्त हुआ। जहाँ भक्ति और सत्यनिष्ठा होती है, वहाँ परमात्मा का प्रेम निश्चित रूप से मिलता है। जीवन में विवेक के बिना कष्ट ही कष्ट हैं। बिना सत्संग के विवेक नहीं हो सकता। सत्संग भी राम की कृपा से ही होता है। अब तो सिर्फ आप ही के सत्संग पर आश्रित हूँ। और कुछ नहीं चाहिये।

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हे प्रभु, मेरी भक्ति, अभीप्सा, और समर्पण में पूर्णता दो। मेरे चारों ओर छाये हुये असत्य के घने अंधकार और सभी दुर्बलताओं को दूर करो। अंधकार बहुत अधिक गहन है, और दुर्बलताएँ भी बहुत अधिक हैं, जिन्हें केवल आप ही दूर कर सकते हो। स्वयं को मुझमें और सर्वत्र व्यक्त करो। मेरे मन, बुद्धि, चित्त, और अहंकार में सिर्फ आप ही की अभिव्यक्ति हो। कहीं कोई पृथकता न रहे।

सभी को नमन !! इस समय अब और कुछ भी लिखना संभव नहीं है। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२३ फरवरी २०२२

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