Thursday 26 December 2019

जगन्माता के एक स्तोत्र "श्रीललिता सहस्त्रनाम" का परिचय ....

जगन्माता के एक स्तोत्र "श्रीललिता सहस्त्रनाम" का परिचय ......
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भारतीय दर्शन में परमात्मा की "परम पुरुष" के रूप में ही नहीं, "जगन्माता" के रूप में भी आराधना होती है| जगन्माता के सैंकड़ों स्तोत्र हैं, पर जिन्हें संस्कृत भाषा का थोड़ा सा भी ज्ञान है, उनके लिए काव्यात्मक और आध्यात्मिक दृष्टि से जगन्माता का सर्वाधिक प्रभावशाली स्तोत्र "श्रीललिता सहस्रनाम" है| यह ब्रह्माण्ड पुराण का अंश है| ब्रह्माण्ड पुराण के उत्तर खण्ड में "ललितोपाख्यान" के रूप में भगवान हयग्रीव और महामुनि अगस्त्य के संवाद के रूप में इसका विवेचन मिलता है| कुछ भक्त इसकी रचना का श्रेय लोपामुद्रा को देते हैं जो अगस्त्य ऋषि की पत्नी थीं| जो भी हो यह स्तोत्र उतना ही शक्तिशाली है जितना "विष्णु सहस्त्रनाम" या "शिव सहस्त्रनाम" है|
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इसको समझकर सुनते ही कोई भी निष्ठावान साधक स्वतः ही ध्यानस्थ हो जाएगा| ध्यान साधना से पूर्व इस स्तोत्र को सुनने या पढ़ने से बड़ी शक्ति मिलती है| किसी भी भक्त की अंतर्चेतना पर इसके अत्यधिक प्रभावशाली मन्त्रों का सकारात्मक प्रभाव निश्चित रूप से पड़ता है|
इसकी प्रथम पंक्ति है .....
"श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्सिंहासनेश्वरी, चिद्ग्निकुण्डसम्भूता देवकार्यसमुद्यता"
इसका भावार्थ होगा .....
श्रीमाता :---- सबका आदि उत्स एवं पालन करने वाली शक्ति|
श्रीमहाराज्ञी :---- शास्त्रों में जो राजाओं का वर्णन है उसके अनुसार इंद्रियों का राजा मन, मन का श्वास , श्वास का लय एवं लय का नाद| नाद सबका राजा| उसका स्त्रीलिंग करें तो राज्ञी| श्री महाराज्ञी अर्थात आदि सृष्टि की महान निस्पन्द निःशब्दता की अधिष्ठात्री|
श्रीमत सिंहासनेश्वरी :---- सब तत्त्वों से ऊपर जो तत्त्व है उसके ऊपर विराजने वाली| (सौंदर्य लहरी में "सुधा सिन्धोर्मध्ये ......" मंत्र देखें)
चिदग्नि कुण्ड संभुता :---- चेतना कुंड से प्रकट होने वाली ।
दो त्रिकोणाकार अग्नि कुण्ड हैं .... एक मूलाधार में, जिसका वर्णन कुंडलिनी ध्यान तथा नारायण सूक्त में आता है| दूसरा सहस्रार का मूल त्रिकोण| सहस्रार के त्रिकोण से प्रकट होकर सृष्टि करती हुई मूलाधार के त्रिकोण में सोती है|
देव कार्य समुद्यता :---- शरीर में ईश्वरीय शक्ति के कारण जो क्रियाएं होती हैं वो जो करवाती हैं|
यहाँ पर ध्वनि, ज्योति एवं स्पन्दन का संकेत दिखता है .....
श्री महाराज्ञी से ध्वनि, श्रीमत सिंहासनेश्वरी से स्पन्दन और चिदग्नि..... से ज्योति|
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श्रीविद्या के आचार्य अगस्त्य ऋषि हैं| वे सारे तंत्रागमों के भी आचार्य हैं, जैसे शैवागमों के आचार्य दुर्वासा ऋषि, और भक्तिसूत्रों के आचार्य देवर्षि नारद हैं| आदि शंकराचार्य (आचार्य शंकर) श्रीविद्या के उपासक थे| आचार्य शंकर ने तत्कालीन अनेक मतों का खंडन किया था अतः तांत्रिक कापालिकों की अभिचार क्रिया से उन्हें भयंकर शारीरिक पीड़ा हो गई| उनका पूरा शरीर रोगग्रस्त हो गया| तब उन्होने सौ श्लोकों की रचना कर त्रिपुरसुंदरी राजराजेश्वरी श्रीललिता की आराधना की, जिससे वे तत्काल पूर्ण स्वस्थ हो गए| वे श्लोक "सौंदर्य लहरी" के नाम से प्रसिद्ध हैं| श्रीविद्या के गूढ़तम और सर्वाधिक प्रभावशाली मंत्र इन श्लोकों में छिपे हुए हैं| आचार्य शंकर की परंपरा में श्रीविद्या की दीक्षा अंतिम दीक्षा है, जिसके बाद और कोई दीक्षा नहीं दी जाती| इसे किसी अधिकृत आचार्य से ही सीख कर साधना करनी चाहिए, पुस्तकें पढ़कर नहीं| यह लेख एक परिचयात्मक लेख ही है|
(पुनश्च :-- आचार्य शंकर को अद्वैत दर्शन का आचार्य कहा जाता है जो गलत है| अद्वैत दर्शन को प्रतिपादित किया था आचार्य गौड़पाद ने जो आचार्य शंकर के गुरु आचार्य गोविंदपाद के गुरु थे|)
ॐ तत्सत् ||
५ दिसंबर २०१९ 

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