Thursday 25 April 2019

ध्यान में प्राप्त आनंद की अनुभूति हमें पूरी सृष्टि यानी पूरे ब्रह्मांड से जोड़ कर एक रखती है .....

ध्यान में प्राप्त आनंद की अनुभूति हमें पूरी सृष्टि यानी पूरे ब्रह्मांड से जोड़ कर एक रखती है .....
.
यह बात हमें श्रुति भगवती यानि उपनिषदों ने बताई है पर आधुनिक भौतिक विज्ञान भी इसी निष्कर्ष पर पहुँच रहा है| विश्व के भौतिक विज्ञानियों के समक्ष यह एक चुनौतीपूर्ण प्रश्न रहा है कि quantum particles अपना व्यवहार क्यों बदल देते हैं जब उन्हें observe किया जाता है? यह भी कि entangled subatomic particles चाहे वे कितनी भी दूर हों, एक दूसरे के संपर्क में क्यों रहते हैं?
.
जेनेवा स्विट्ज़रलैंड के पास Large Hadron Collider में “unified field theory” पर चल रहे प्रयोगों में एक बहुत बड़े भारतीय भौतिक वैज्ञानिक ने बहुत लम्बे समय तक चले प्रयोगों के बाद यह पाया कि जिस तरह electromagnetism, gravity, और atomic forces होती हैं, उसी तरह की एक और अति सूक्ष्म pervasive quantum force होती है जो सारे subatomic particles को आपस में जोड़ती है| वह force इतनी सूक्ष्म होती है कि हमारे विचारों से भी प्रभावित होती है| वह force यानि वह शक्ति ही है जो सारे ब्रह्मांड को आपस में जोड़ कर एक रखती है| यह खोज जिन भारतीय वैज्ञानिक ने की उन्होनें बड़ी विनम्रता से अपने नाम पर इस शक्ति का नाम रखने से मना कर दिया| इस शक्ति को कुछ भी नाम देने का इन्हें अधिकार था क्योंकि मुख्यतः यह खोज इन्हीं की थी| पर वे इस खोज के पश्चात एक गहरे ध्यान में चले गए जिसका अभ्यास वे नित्य नियमित करते थे| उस गहन ध्यान में उन्होंने स्वयं से यह प्रश्न पूछा कि इस conscious universal force का वे क्या नाम दें जो समस्त ब्रह्मांड को जोड़कर एक रखती है? इसका उत्तर भी तुरंत आया और इसका नाम उन्होंने "BLISSONITE" रखा|
.
हमारे शास्त्रों के अनुसार ध्यान में प्राप्त आनंद ही है जो हमें ब्रह्म से जोड़कर एक रखता है| ब्रह्म है ... पूर्णत्व, जिसके बारे में वृहदारण्यक तथा ईशावास्य उपनिषद कहते हैं ...
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते|
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||" ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||
.
यह आनंद ही है जो इस सृष्टि की रचना करता है और सारी सृष्टि को जोड़कर एक रखता है| यह सर्वत्र व्याप्त है| तैतरीय उपनिषद कहता है ....
"ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः। शं नो भवत्वर्यमा। शं न इन्द्रो वृहस्पतिः। शं नो विष्णुरुरुक्रमः। नमो ब्रह्मणे। नमस्ते वायो। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वमेव प्रत्यक्षम् ब्रह्म वदिष्यामि। ॠतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु। तद्वक्तारमवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारम्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"


कृपा शंकर 
५ अप्रेल २०१९

No comments:

Post a Comment