Thursday 25 April 2019

आज कई वर्षों के बाद काली-पीली आंधी आई है, दिन में भी रात सी हो गयी है ....

आज कई वर्षों के बाद काली-पीली आंधी आई है, दिन में भी रात सी हो गयी है|
.
पच्चिस-तीस वर्ष पहिले तक इस मरुभूमि में चैत्र माह के लगते ही आंधियाँ आनी प्रारम्भ हो जाती थीं| कई बार तो आंधियाँ तीन-तीन चार-चार दिनों तक लगातार चलती थीं जिनमें रेत के अनेक टीले भी स्थानांतरित हो जाते थे| पर काली-पीली आंधी तो गर्मी के मौसम में वर्ष में लगभग दो-तीन बार ही आती थीं| पीले रंग की बहुत ही बारिक रेत आसमान में इतनी गहरी छा जाती थी कि दिन में भी रात का सा अन्धेरा हो जाता| इसलिए इन्हें काली-पीली आंधी कहते थे| राजस्थान में अनेक स्थानों पर हरियाली हो जाने के कारण ये आनी बंद हो गयी थीं| आंधियाँ आनी भी बहुत ही कम नहीं के बराबर हो गयी हैं|
.
पर आज आचानक ही काली-पीली आंधी आई है| पीले रंग की बहुत ही बारीक बारीक रेत उड़ रही है और दिन में भी अन्धेरा सा हो गया है| पूरा घर मिट्टी से भर गया है|
.
बचपन में हमने टिड्डी-दल भी बहुत देखे हैं जो आसमान में छाकर दिन में भी रात का सा अन्धेरा कर देते थे| ये टिड्डियाँ जहाँ भी बैठतीं वहाँ की सारी हरियाली का नाश कर देती थीं और उस क्षेत्र में अकाल पड़ जाता था| ये टिड्डियाँ उत्तरी-पश्चिमी अफ्रिका से आती थीं और अपने पीछे-पीछे अकाल और बर्बादी को लेकर चलती थीं| अब तो इनको इनके मूल स्थान पर ही नष्ट कर दिया जाता है, अतः आजकल के नवयुवकों को पता ही नहीं है कि टिड्डियाँ क्या होती हैं|
कृपा शंकर
झुंझुनूं (राजस्थान)
७ अप्रेल २०१९

No comments:

Post a Comment