Thursday 25 April 2019

भगवान को कौन प्राप्त कर सकता है ?,,,,,

भगवान को कौन प्राप्त कर सकता है ?
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भगवान करुणा और प्रेमवश अनुकम्पा कर के ही स्वयं को अनावृत करते हैं| हम भगवान का नाम-स्मरण, चिंतन और ध्यान उनकी परम अनुकम्पा और अनुग्रह के बिना नहीं कर सकते| गीता के दसवें अध्याय विभूति-योग में उन्होंने यह स्पस्ट कहा है .....
"तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ | ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते||१०:१०||"
"तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः| नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ||१०:११||

अर्थात् जो सदा अपने मन को मुझमें जो सदैव अपने मन को मुझमें स्थित रखते हैं और प्रेम-पूर्वक निरन्तर मेरा स्मरण करते हैं, उन भक्तों को मैं वह बुद्धि प्रदान करता हूँ, जिससे वह मुझको ही प्राप्त होते हैं||१०:१०||
हे अर्जुन! उन भक्तों पर विशेष कृपा करने के लिये उनके हृदय में स्थित आत्मा के द्वारा उनके अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी दीपक के प्रकाश से दूर करता हूँ||१०:११||
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वे साधनागम्य नहीं, प्रेमगम्य हैं| इसे ही संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में कहा है ....
"सोइ जानइ जेहि देहु जनाई| जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई||"
और
"मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा, किएँ जोग तप ग्यान बिरागा" ....
बिना परम प्रेम यानि बिना भक्ति के भगवान नहीं मिल सकते| अन्य सभी साधन भी तभी सफल होते हैं जब ह्रदय में भक्ति होती है|
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भगवान प्रेम और समर्पण से ही प्राप्त हो सकते हैं, अन्य किसी उपाय से नहीं|
कृपा शंकर
९ अप्रेल २०१९

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