Tuesday 12 February 2019

पुरुष और प्रकृति नाचे साथ साथ .....

पुरुष और प्रकृति नाचे साथ साथ .....

वर्तमान का यह क्षण मेरा है जो मेरे इस जीवन का सर्वश्रेष्ठ क्षण है| कोई भूत नहीं, कोई भविष्य नहीं, वर्त्तमान ही मेरा है जिसमें मैं परमात्मा के साथ एक हूँ| ओंकार की ध्वनि में लिपटा हुआ सर्वव्यापी ज्योतिर्मय कूटस्थ ब्रह्म ही मेरा वास्तविक स्वरुप है| उसकी चेतना ही मेरी चेतना है|

सारी सृष्टि और सृष्टिकर्ता साथ साथ नृत्य कर रहे हैं| पुरुष और प्रकृति दोनों का नृत्य चल रहा है| दोनों साथ साथ नाच रहे हैं|
राधे गोविन्द जय
राधे गोविंद जय
राधे गोविन्द जय
राधे गोविन्द जय
पुरुष और प्रकृति नाचे साथ साथ 


इस पुरुष और प्रकृति के साथ साथ हो रहे नृत्य से अधिक सुन्दर और क्या हो सकता है? उनका वह नृत्य ही सारा अस्तित्व है| देखने योग्य यदि कुछ है तो उनका वह नृत्य ही है| वह नृत्य ही नटराज है|

ॐ तत्सत् ! ॐ शिव ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ फरवरी २०१९

2 comments:

  1. ज्ञान-अज्ञान-विज्ञान-संज्ञान-प्रज्ञान , विद्या-अविद्या, जीव-शिव, ब्रह्म-माया, साकार-निराकार ... आदि भारी-भरकम शब्दों से स्वयं को मुक्त कर रहा हूँ|

    जगन्माता के परमप्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिए| मैं स्वयं ही उनका परमप्रेम हूँ| स्वयं अपने में ही डूब जाऊँ| बस ! यही अभीप्सित है| यही मेरी नियति है|
    ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
    ९ फरवरी २०१९

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  2. इस संसार में पाने के लिए अब कुछ भी नहीं बचा है.
    सब कुछ तो पा लिया.
    जिसे मैं ढूँढ रहा था वह तो मैं स्वयं हूँ.
    अन्य कुछ भी नहीं है.

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