सुषुम्ना के सात चक्रों की अग्नियों के साथ विश्वरूपमहाग्नि में हवन .....
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मूलाधार चक्र ........ ॐ दक्षिणाग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
स्वाधिष्ठान चक्र ...... ॐ गृहपतिअग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
मणिपुर चक्र ..........ॐ वैश्वानरअग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
अनाहत चक्र ......... ॐ आहवनीयअग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
विशुद्धि चक्र .......... ॐ समिद्भवनअग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
आज्ञा चक्र ............. ॐ ब्रह्माग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
सहस्रार चक्र ...........ॐ विश्वरूपमहाग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
.
सभी चक्रों में जो अग्नि प्रज्वलित हैं , वह सबसे ऊपर स्थित विश्वरूप महाग्नि के कारण ही है, उसी में सब की आहुति देनी है|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
.
पुनश्चः :---
ॐ।
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥ 1 ॥
ॐ।
राजाधिराजाय प्रसह्यसाहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ॥ 2 ॥
ॐ स्वस्ति।
साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं
माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी स्यात्सार्वभौमः सार्वायुष
आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंताया एकराळिति ॥ 3 ॥
तदप्येषः श्लोकोऽभिगीतो।
मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वे देवाः सभासद इति ॥ 4 ॥
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मूलाधार चक्र ........ ॐ दक्षिणाग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
स्वाधिष्ठान चक्र ...... ॐ गृहपतिअग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
मणिपुर चक्र ..........ॐ वैश्वानरअग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
अनाहत चक्र ......... ॐ आहवनीयअग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
विशुद्धि चक्र .......... ॐ समिद्भवनअग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
आज्ञा चक्र ............. ॐ ब्रह्माग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
सहस्रार चक्र ...........ॐ विश्वरूपमहाग्नये स्वाहा | इदं ते न मम ||
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सभी चक्रों में जो अग्नि प्रज्वलित हैं , वह सबसे ऊपर स्थित विश्वरूप महाग्नि के कारण ही है, उसी में सब की आहुति देनी है|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
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पुनश्चः :---
ॐ।
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥ 1 ॥
ॐ।
राजाधिराजाय प्रसह्यसाहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ॥ 2 ॥
ॐ स्वस्ति।
साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं
माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी स्यात्सार्वभौमः सार्वायुष
आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंताया एकराळिति ॥ 3 ॥
तदप्येषः श्लोकोऽभिगीतो।
मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वे देवाः सभासद इति ॥ 4 ॥
प्रार्थना :
ReplyDeleteहे प्रभु, आप मेरे लिए बोधगम्य हों.
आपकी पूर्ण अभिव्यक्ति मुझ में हो. कोई भेद न हो.
ॐ ॐ ॐ
अपानवायु में प्राणवायु का, और प्राणवायु में अपानवायु का हवन क्या होता है? .
ReplyDeleteगीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ....
"अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे |
प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ||४:२९||
भावार्थ : बहुत से मनुष्य अपान-वायु में प्राण-वायु का, उसी प्रकार प्राण-वायु में अपान-वायु का हवन करते हैं तथा अन्य मनुष्य प्राण-वायु और अपान-वायु की गति को रोक कर समाधि मे प्रवृत होते है|
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यह प्राण तत्व से सम्बंधित एक गोपनीय विषय है जिसकी विधि का गुरुपरम्परा से बाहर चर्चा करने का निषेध है| निषेधात्मक कारणों से मैं इस पर कोई सार्वजनिक चर्चा नहीं कर सकता| इसका मुझे अधिकार नहीं है, पर जिज्ञासुओं से अनुरोध है कि इसे किसी अधिकृत ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से अवसर मिलने पर अवश्य सीखें| मैं अधिकृत नहीं हूँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
११ फरवरी २०१९