श्राद्ध के बारे में यह मेरा एक निजी विचार है .....
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सिद्ध गुरु द्वारा प्रदत्त विधि से बीजमंत्रों का प्रयोग करते हुए निज चेतना और चंचल प्राण को बार बार मूलाधार चक्र से उठाकर सुषुम्ना मार्ग से होते हुए आज्ञाचक्र का भेदन कर उत्तरा सुषुम्ना में ज्योतिर्मय ब्रह्म परमात्मा को अर्पित करना भी पिण्डदान और तर्पण है| उत्तरा सुषुम्ना में ध्यान करने से प्राण तत्व की चंचलता धीरे धीरे कम होने लगती है और मन नियंत्रित होने लगता है जिससे दारुण दुःखदायी काम, क्रोध व लोभ आदि का शमन होने लगता है|
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लौकिक श्राद्ध तो करें ही पर वास्तविक संतुष्टि तो आत्मतत्व पर ध्यान से ही मिलती है| आत्मतत्व में स्थिति ही मेरी सीमित समझ से परमात्मा का साक्षात्कार है| यह हमारा सर्वोपरी दायित्व व सर्वोच्च सेवा है| इस से स्वतः ही सभी पित्तरों का उद्धार हो जाता है| आत्मतत्व में स्थिति ही हमारा परमधर्म है|
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जिन के विचार नहीं मिलते वे अपना समय नष्ट न करते हुए मेरी उपेक्षा कर दें और अपनी अपनी मान्यता पर दृढ़ रहें| किसी उग्र प्रतिक्रिया की आवश्यकता नहीं है|
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आप सब निजात्मगण को नमन ! हरि ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
२८ सितम्बर २०१८
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सिद्ध गुरु द्वारा प्रदत्त विधि से बीजमंत्रों का प्रयोग करते हुए निज चेतना और चंचल प्राण को बार बार मूलाधार चक्र से उठाकर सुषुम्ना मार्ग से होते हुए आज्ञाचक्र का भेदन कर उत्तरा सुषुम्ना में ज्योतिर्मय ब्रह्म परमात्मा को अर्पित करना भी पिण्डदान और तर्पण है| उत्तरा सुषुम्ना में ध्यान करने से प्राण तत्व की चंचलता धीरे धीरे कम होने लगती है और मन नियंत्रित होने लगता है जिससे दारुण दुःखदायी काम, क्रोध व लोभ आदि का शमन होने लगता है|
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लौकिक श्राद्ध तो करें ही पर वास्तविक संतुष्टि तो आत्मतत्व पर ध्यान से ही मिलती है| आत्मतत्व में स्थिति ही मेरी सीमित समझ से परमात्मा का साक्षात्कार है| यह हमारा सर्वोपरी दायित्व व सर्वोच्च सेवा है| इस से स्वतः ही सभी पित्तरों का उद्धार हो जाता है| आत्मतत्व में स्थिति ही हमारा परमधर्म है|
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जिन के विचार नहीं मिलते वे अपना समय नष्ट न करते हुए मेरी उपेक्षा कर दें और अपनी अपनी मान्यता पर दृढ़ रहें| किसी उग्र प्रतिक्रिया की आवश्यकता नहीं है|
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आप सब निजात्मगण को नमन ! हरि ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
२८ सितम्बर २०१८
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