हमारा जीवन परमात्मा को समर्पित हो| जीवन जब परमात्मा को समर्पित कर ही
दिया है तब कोई चिंता नहीं करनी चाहिए| परमात्मा का ही यह जीवन है अतः वे
स्वयं ही इसकी चिंता करें| गीता में भगवान का शाश्वत वचन है .....
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति का नाम योग है, और प्राप्त वस्तु की रक्षा का नाम क्षेम है| अपने अनन्य भक्तों का ये दोनों ही काम परमात्मा स्वयं करते हैं| अनन्यदर्शी भक्त अपने लिये योगक्षेम सम्बन्धी कोई चेष्टा नहीं करते, क्योंकि जीने और मरने में उनकी आस्था नहीं होती| भगवान ही उनके अवलंबन होते हैं, और भगवान ही उनका योगक्षेम चलाते हैं|
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति का नाम योग है, और प्राप्त वस्तु की रक्षा का नाम क्षेम है| अपने अनन्य भक्तों का ये दोनों ही काम परमात्मा स्वयं करते हैं| अनन्यदर्शी भक्त अपने लिये योगक्षेम सम्बन्धी कोई चेष्टा नहीं करते, क्योंकि जीने और मरने में उनकी आस्था नहीं होती| भगवान ही उनके अवलंबन होते हैं, और भगवान ही उनका योगक्षेम चलाते हैं|
इन फेफड़ों से इन
नासिकाओं के माध्यम से भगवान ही सांस ले रहे हैं| इस हृदय में वे ही धड़क
रहे हैं| उनका जीवन है, जब तक वे चाहें, तब तक इसे जीयें| जब इस से वे
तृप्त हो जाएँ तब इसे समाप्त कर दें| यह उनकी स्वतंत्र इच्छा है, हमारी
नहीं|
हरि ॐ तत्सत् ! हरि ॐ तत्सत् ! हरि ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
२९ सितम्बर २०१८
हरि ॐ तत्सत् ! हरि ॐ तत्सत् ! हरि ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
२९ सितम्बर २०१८
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