Saturday 29 September 2018

साधना गहन हो .....

छोटी-मोटी प्रार्थना, दिखावे की धार्मिकता, गृहस्थ होने की बाध्यता का बहाना, और भी अनेक बहाने, ....... इनका कोई लाभ नहीं है| सप्ताह में कम से कम एक दिन तो ऐसा हमें निकालना चाहिए जिसमें कई घंटों तक हम परमात्मा की गहराई से डूब सकें| परमात्मा के आनंद का आभास इतना घना है कि उसको सहन करने का अभ्यास करना पड़ता है| एक असंयमी भोगी व्यक्ति उसे सहन नहीं कर सकता| मैं यहाँ जो कहना चाहता हूँ उसे निश्चित रूप से इन पंक्तियों को पढ़ने वाले समझ चुके हैं|
हरि ॐ तत्सत् ! हरि ॐ तत्सत् ! हरि ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
२९ सितम्बर २०१८

1 comment:

  1. चित्त की क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र और निरूद्ध .... ये पाँच अवस्थाएँ होती हैं| आरम्भ की तीन अवस्थाएँ तमोगुण की अधिकता के कारण होती हैं| इनमें किसी भी व्यक्ति के लिए भगवान की भक्ति और ध्यान असम्भव है| ऐसे लोगों को संत-महात्मा भी तमोगुण से निकालने का प्रयास करते हैं| ऐसे लोगों का साथ भक्ति में बाधक है, अतः एक साधक को इनका कुसंग कभी भी नहीं करना चाहिए|

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