छोटी-मोटी
प्रार्थना, दिखावे की धार्मिकता, गृहस्थ होने की बाध्यता का बहाना, और भी
अनेक बहाने, ....... इनका कोई लाभ नहीं है| सप्ताह में कम से कम एक दिन तो
ऐसा हमें निकालना चाहिए जिसमें कई घंटों तक हम परमात्मा की गहराई से डूब
सकें| परमात्मा के आनंद का आभास इतना घना है कि उसको सहन करने का अभ्यास
करना पड़ता है| एक असंयमी भोगी व्यक्ति उसे सहन नहीं कर सकता| मैं यहाँ जो
कहना चाहता हूँ उसे निश्चित रूप से इन पंक्तियों को पढ़ने वाले समझ चुके
हैं|
हरि ॐ तत्सत् ! हरि ॐ तत्सत् ! हरि ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
२९ सितम्बर २०१८
हरि ॐ तत्सत् ! हरि ॐ तत्सत् ! हरि ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
२९ सितम्बर २०१८
चित्त की क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र और निरूद्ध .... ये पाँच अवस्थाएँ होती हैं| आरम्भ की तीन अवस्थाएँ तमोगुण की अधिकता के कारण होती हैं| इनमें किसी भी व्यक्ति के लिए भगवान की भक्ति और ध्यान असम्भव है| ऐसे लोगों को संत-महात्मा भी तमोगुण से निकालने का प्रयास करते हैं| ऐसे लोगों का साथ भक्ति में बाधक है, अतः एक साधक को इनका कुसंग कभी भी नहीं करना चाहिए|
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