Sunday 8 July 2018

क्या परमात्मा मन का विषय हैं ? .....

क्या परमात्मा मन का विषय हैं ? .....
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श्रुति भगवती कहती है ..... "यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मतम्‌ | तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ||" (केनोपनिषद १-६).
'वह' जो मन के द्वारा मनन नहीं करता, 'वह' जिसके द्वारा मन स्वयं मनन का विषय बन जाता है, 'उसे' ही तुम 'ब्रह्म' जानो, न कि इसे जिसकी मनुष्य यहाँ उपासना करते हैं|
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मेरे विचार से यह विषय समझने के लिए गीता के तेरहवें अध्याय "क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग" का स्वाध्याय बहुत अधिक सहायक होगा|
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एक बात तो निश्चित है कि परमात्मा हमारे मन और बुद्धि की समझ से परे है| उसके गुणों की हम गहरे ध्यान में अनुभूति तो कर सकते हैं, पर अपना रहस्य तो वे स्वयं ही कृपा कर के किसी को अनावृत कर सकते हैं|
"सोइ जानहि जेहि देहु जनाई, जानत तुमहिं तुमहि हुई जाई|"
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ जुलाई २०१८

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