Sunday, 8 July 2018

इतने सारे सदगुण कहाँ से लाएँ ? .....

इतने सारे सदगुण कहाँ से लाएँ ? .....
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गीता में भगवान कहते हैं .....
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च| निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी||१२:१३||
अर्थात् सब प्राणियों में द्वेषभाव से रहित, सब का मित्र और दयालु, ममता रहित, अहंकार रहित, सुख-दुःख की प्राप्ति में सम, क्षमाशील, निरन्तर सन्तुष्ट, योगी, शरीरको वशमें किये हुए, दृढ़ निश्चय वाला, मेरे में अर्पित मन-बुद्धिवाला जो मेरा भक्त है, वह मेरेको प्रिय है|
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भगवान ने बहुत सारे गुण गिना दिए हैं| अब सिर्फ कामना करने, या संकल्प करने मात्र से तो इतने सारे गुण आ नहीं सकते, अब ये सारे गुण कहाँ से कैसे अपने भीतर लायें? यह तो हमारे वश के बात नहीं है| हे प्रभु आप चाहते हैं कि ये गुण आपके भक्तों में हों तो अब आप स्वयं ही इन्हें हमें प्रदान करें| ये हमारे वश की बात नहीं है कि हम इन्हें विकसित करें| हम तो आपके परम अनुग्रह पर निर्भर हैं|
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हमें तो आप से आप के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिए| अपने गुण-अवगुण सब अपने पास ही रखो| ये हमारे किसी काम के नहीं हैं| आना है तो आओ, अन्यथा रहने दो| पर हम तुम्हारे बिना नहीं रह सकते| तुम्हें इसी क्षण इसी क्षण आना ही पड़ेगा, कोई अन्य विकल्प तुम्हारे पास भी नहीं है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ जुलाई २०१८

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