Sunday, 8 July 2018

भगवान को निवेदित किये बिना, व औरों को खिलाये बिना अकेला ही खाने वाला केवल अपने पापों का ही भक्षण करता है ....

भगवान को निवेदित किये बिना, व औरों को खिलाये बिना अकेला ही खाने वाला केवल अपने पापों का ही भक्षण करता है ....
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गीता में भगवान कहते हैं ....
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः| तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः||१३:१२||
अर्थात यज्ञ द्वारा पोषित देवतागण तुम्हें इष्ट भोग प्रदान करेंगे| उनके द्वारा दिये हुये भोगों को जो पुरुष उनको दिये बिना ही भोगता है वह निश्चय ही चोर है||
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सब कुछ हमें भगवान से उधार मिला है, वह एक ऋण है जो हमें बापस उन्हें लौटाना ही होगा| हमें भोजन भी भगवान की कृपा से ही मिलता है जिसके लिए हमें भगवान का उपकार मानना चाहिए| बिना उन्हें अर्पित किये कुछ भी आहार ग्रहण करना एक चोरी ही है| मनुस्मृति में भगवान मनु महाराज कहते हैं....
अघं स केवलं भुङ्क्ते यः पचत्यात्मकारणात् | यज्ञशिष्टाशनं ह्येतत्सतां अन्नं विधीयते ||३:११८||
अर्थात् जो देवता आदि को अर्पित किये बिना केवल अपने लिए अन्न पकाकर खाता है, वह केवल पाप खाता है|
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श्रुति भगवती भी कहती हैं .....
मोघमन्नं विन्दते अप्रचेताः सत्यं ब्रवीमि वध इत् स तस्य|
नार्यमणं पुष्यति नो सखायं केवलाघो भवति केवलादी|| ऋग्वेद १०:११७:६||
(शब्दार्थ-अप्रचेताः = दुर्बु( मनुष्य मोघम्= व्यर्थ ही अन्नम् = भोग-सामग्री को विन्दते= पाता है। सत्यं ब्रवीमि = सच कहता हूं कि सः= वह भोग-सामग्री तस्य = उस मनुष्य के लिए वध इत् = मृत्यु रूप ही होती है - उसका नाश करने वाली ही होती है। ऐसा दुर्बु( न अर्यमणं पुष्यति = न तो यज्ञ द्वारा अर्यमादि देवों की पुष्टि करता है नो सखायम् = और न ही मनुष्य-साथियों की पुष्टि करता है। सचमुच वह केवलादी = अकेला खाने-भोग करनेवाला मनुष्य केवलाघो भवति = केवल पाप को ही भोगनेवाला होता है।
साभार :वैदिक विनय)
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संसार में धनी दिखने वाले दुर्बुद्धि मनुष्यों के पास जो अन्न भण्डार आदि जो भोग विलास की सामग्री है, वह उनका काल यानी मृत्यु की सामग्री है क्योंकि वे इस से अपनी देह को ही पोषित करते हैं| औरों को खिलाये बिना अकेला ही खाने वाला केवल अपने पापों को ही खाता है|
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हे प्रभु, मैं तुम्हारी शरण में हूँ, सिर्फ तुम्हारा ही भरोसा है| इस लालची और स्वार्थमय विपत्ति रूपी रूपी पाप जाल को काटो| 
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जुलाई २०१८

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