Wednesday, 7 February 2018

सब कुछ परमात्मा को ही समर्पित है, कुछ भी नहीं चाहिए ......

सारा ज्ञान-अज्ञान, बुद्धिमता-मूर्खता और भला-बुरा सब कुछ सृष्टिकर्ता परम प्रिय परमात्मा को ही बापस समर्पित है| इनमें से कुछ भी नहीं चाहिए ......
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कई ज्ञान की बाते हैं जो मेरी अति अल्प और सीमित बुद्धि द्वारा समझने की क्षमता से परे एक भयंकर अरण्य (जंगल) की तरह हैं| मुझे उनमें भटकाव ही भटकाव लगता है| जो चीज समझ में नहीं आती उन्हें समझने की चेष्टा करने की बजाय उन्हें वहीं छोड़कर आगे बढ़ जाना ही अधिक उचित समझता हूँ| भगवान जो चीज समझा दे वह ही ठीक है, और जो नहीं समझाये वह भी ठीक है| If I do not understand, I stand under.
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जो भी है, भगवान ने जितनी भी समझ दी है, और जितनी भी नासमझी यानि बेवकूफी दी है, उन सब से मैं संतुष्ट हूँ कि भगवान ने इस योग्य समझा, यह उनकी परम कृपा है| सारा ज्ञान-अज्ञान, बुद्धिमता-मूर्खता और भला-बुरा सब कुछ सृष्टिकर्ता परम प्रिय परमात्मा को ही बापस समर्पित है| जैसा भी भगवान ने बनाया है, और जो कुछ भी हुआ है, उससे मुझे कोई शिकायत नहीं है| मैं जीवन में पूरी तरह संतुष्ट, प्रसन्न और सुखी हूँ| मुझे उन परमात्मा के अतिरिक्त इस जीवन में और कुछ भी नहीं चाहिए| क्या पता कि वे मिल भी गए हों, जो हर समय इस हृदय में चैतन्य हैं|
कोई कामना नहीं है, जीवन सफल हुआ|
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ॐ तत्सत् !ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०४ फरवरी २०१८

3 comments:

  1. सभी नाम-रूपों से परे हम सदा कूटस्थ चैतन्य में ही स्थित रहें.
    आज्ञाचक्र ही हमारा हृदय है.
    शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि.
    ॐ ॐ ॐ

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  2. इस जीवन में वो ही समय सार्थक है जो प्रभु के ध्यान में व्यतीत होता है, बाकी सब मरुभूमि में गिरी जल की कुछ बूंदों की तरह निरर्थक है.

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  3. भगवान को अपने ह्रदय का सम्पूर्ण प्रेम दो. उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मत माँगो. प्रेम मिल गया तो सब कुछ मिल गया.
    ॐ ॐ ॐ

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