Wednesday 7 February 2018

मनुष्य की चेतना का केंद्र उसकी सूक्ष्म देह में स्थित आज्ञाचक्र ही है .....

मनुष्य की चेतना का केंद्र उसकी सूक्ष्म देह में स्थित आज्ञाचक्र ही है .....
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यह गुरु-परम्परा और स्वाध्याय से ही नहीं, निज अनुभूतियों से भी अनुभूत सत्य है| भ्रूमध्य में दृष्टि रखते हुए ध्यान करने की श्रुति भगवती द्वारा कृष्ण यजुर्वेद के श्वेताश्वतरोपनिषद में, भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता में, और गुरु महाराज द्वारा उनके उपदेशों में स्पष्ट आज्ञा है, इसी कारण से हम भ्रूमध्य में दृष्टि रखते हुए ध्यान करते हैं| इस लिए इस क्षेत्र को योग शास्त्रों में आज्ञाचक्र कहते हैं, और योगियों का यही हृदय स्थल है|
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आज्ञा चक्र का स्थान भ्रूमध्य के ठीक बिलकुल सामने खोपड़ी के पीछे के भाग, मेरुशीर्ष (Medulla Oblongata) के मध्य में सूक्ष्मातिसूक्ष्म रूप में है, जहाँ मेरुदंड की सभी नाड़ियाँ मष्तिष्क से मिलती हैं| गहरे ध्यान में यहीं पर ब्रह्मज्योति प्रकट होती है जो भ्रूमध्य में प्रतिबिंबित होते हुए सारी सृष्टि में विस्तृत हो जाती है| यहीं पर नादब्रह्म की प्रणव ध्वनि सुनाई देती है| इस ज्योति और ध्वनि को ही कूटस्थ ब्रह्म कहते हैं| इसी की चेतना को कूटस्थ चैतन्य कहते हैं| इस में स्थिति ही ब्राह्मी स्थिति है| दृष्टि भ्रूमध्य में हो, और चेतना आज्ञाचक्र में हो|
इस के ठीक ऊपर के बिंदु पर शिखा रखते हैं| प्राचीन भारत में शिखा रखने वाले सभी लोग मेधावी होते थे| यह शिखा का महत्त्व है|
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गुरु की आज्ञा से और उनके द्वारा बताई गयी विधि से यहीं पर ध्यान करते करते सुषुम्ना चैतन्य हो जाती है और कुण्डलिनी जागृत होती है| सारी विधि का ज्ञान ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य ही प्रत्यक्ष रूप से करा सकते हैं|
पर सभी को निष्काम भाव से यह अभ्यास करना चाहिए| अपना मंत्रजप और ध्यान पूरी भक्तिभाव से इसी विधि से करना चाहिए|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपाशंकर
०५ फरवरी २०१८

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