Wednesday, 7 February 2018

हमारे राष्ट्रीय चरित्र में ह्रास के लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था दोषी है .....

हमारे राष्ट्रीय चरित्र में ह्रास के लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था दोषी है .....
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मुझे अर्थशास्त्र का या Finance का कोई ज्ञान नहीं है, अतः आर्थिक मामलों को नहीं समझता| आर्थिक मामलों और बजट पर कभी कोई टिप्पणी भी नहीं करता| एक मुकदमें की बीस लाख रुपया फीस लेने वाले वकील वर्तमान वित्तमंत्री श्री अरुण जेटली निश्चित रूप से मुझसे अधिक बुद्धिमान हैं| वे एक अर्थशास्त्री भी हैं| और भी एक से बढकर एक बड़े बड़े धुरंधर अर्थशास्त्री दिल्ली में बैठे हैं| उनके सामने मेरी कोई औकात नहीं है| अतः जिस विषय का ज्ञान नहीं है, उस पर नहीं बोलना ही अच्छा है|
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पर एक बात मुझे अखरती है कि हम कच्चा माल निर्यात कर के उसी से उत्पादित माल का आयात क्यों करते हैं? हम अपने ही देश में अपनी आवश्यकता का सामान क्यों नहीं बना सकते? हम अपने इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग और मशीनों के कल पुर्जों आदि के लिए चीन पर क्यों निर्भर हैं? रक्षा क्षेत्र में भी हम अभी तक आत्मनिर्भर क्यों नहीं हैं? हम अपने हथियार स्वयं क्यों नहीं बना सकते? हम शक्तिशाली नहीं हैं इसीलिए दूसरे देश हमें दबाते आये हैं| हम कब शक्तिशाली बनेंगे? विगत सरकारों की नीतियों के कारण उद्योगपतियों ने स्वयं उत्पादन न कर, चीन से आयात कर के विक्रय करना अधिक लाभप्रद समझा| इसीलिए चीनी सामान इतना सस्ता और अच्छा आता है| हम स्वयं सस्ता और अच्छा माल क्यों नहीं बना सकते? पहली बार कोई राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री आया है जो देश को स्वावलंबी बनाने का प्रयास कर रहा है, पर समस्याएँ बहुत अधिक व बहुत गहरी हैं|
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हमारी सबसे बड़ी समस्या हमारे राष्ट्रीय चरित्र में है जिसके लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था दोषी है| शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्य होने चाहियें जो वर्तमान में नहीं हो रहे हैं| वामपंथियों और धर्मनिरपेक्षतावादियों का प्रभाव न्यूनतम या शून्य किया जाना चाहिए| शैक्षणिक संस्थानों से मैकॉले के मानसपुत्रों को बाहर करना चाहिए| देश का असली विकास देश के नागरिकों का चरित्रवान और निष्ठावान होना है| शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो जिस से देश का नागरिक ईमानदार बने, चरित्रवान और देशभक्त बने| पढाई का स्तर विश्व स्तरीय हो| हमें ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए जो हमें स्वाभिमानी, चरित्रवान और ऊर्ध्वमुखी बनाए, क्योंकि आत्मा का विकास ही वास्तविक विकास है|
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हमारी इस शिक्षा व्यवस्था के दोष के कारण ही कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया .... सभी भ्रष्ट हैं| भारत में भ्रष्ट नौकरशाही द्वारा हर कार्य करवाने की बजाय उस क्षेत्र के विशेषज्ञों को रखा जाय| हर क्षेत्र में उस क्षेत्र के विशेषज्ञ ही हों| मंत्रीगण भी अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ हों| संविधान में संशोधन कर के ऐसी व्यवस्था की जाए|
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मेरे मन में एक पीड़ा थी जो इन शब्दों में व्यक्त हो गयी है| लिखने के बाद वह पीड़ा थोड़ी कम हुई है| सभी पाठकों को साभार धन्यवाद व नमन !
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०४ फरवरी २०१८

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