Wednesday 7 February 2018

"कैवल्य" शब्द का अर्थ ......

"कैवल्य" का अर्थ ......
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"कैवल्य" शब्द के अर्थ पर कई बार चिंतन किया है पर मेरे विचार से यह निजानुभूति से ही समझ में आने वाला एक दर्शन है| "कैवल्य" एक अवस्था है जिसे प्राप्त कर के ही समझा जा सकता है| राग-द्वेष और अहंकार से परे की वीतराग अवस्था का नाम "कैवल्य" है| जैन दर्शन में भी "कैवल्य" शब्द बहुत बार आता है|
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भारत में कई मठों व आश्रमों का नाम "कैवल्य धाम" है| बांग्लादेश के चटगांव (अंग्रेजी में Chittagong) नगर में भी एक ऊंची पहाड़ी पर "कैवल्य धाम" नाम का एक मठ है| मैं वहाँ की एक यात्रा का अपना अनुभव आपके साथ बाँट रहा हूँ| पैंतीस वर्ष पूर्व सन १९८३ में मुझे किसी काम से बांग्लादेश के चटगांव नगर में जाना पड़ा था| आजादी से पूर्व यह क्षेत्र जब भारत का ही भाग था, तब क्रांतिकारियों का गढ़ और हिन्दू बहुल क्षेत्र रहा था| पर वहाँ जाकर मुझे बड़ी निराशा हुई| जैसी मुझे अपेक्षा थी वैसा वहाँ कुछ भी नहीं था| कहीं पर भी कोई हिन्दू मंदिर तो दूर की बात है, किसी हिन्दू मंदिर के अवशेष भी नहीं मिले| एक पहाडी पर फ़ैयाज़ लेक नाम की एक झील थी जो बड़ी सुन्दर थी| लोगों से मैंने पूछा कि कोई हिन्दू मंदिर भी यहाँ पर है क्या? लोगों ने बताया कि एक पहाड़ी पर "कैवल्य धाम" नाम का एक हिन्दू मठ है जिसे मुझे अवश्य देखना चाहिए| मैं उस पहाड़ी पर स्थित "कैवल्य धाम" नाम के मठ में गया| वह स्थान तो बहुत बड़ा था जिस की दीवारों पर नयी नयी सफेदी हुई थी| वहाँ चार-पांच आदमी बैठे थे जो बड़े मायूस से थे| वे न तो मेरी हिंदी या अंग्रेजी समझ सके और न मैं उनकी बांग्ला समझ सका| उन्होंने अपनी भाषा में कहा तो बहुत कुछ पर मैं कुछ भी नहीं समझ पाया| नीचे लोग तिरस्कार पूर्वक उस स्थान को "केबलाई डैम" बोल रहे थे|
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अमेरिका में भी "कैवल्य धाम" नाम के कई आश्रम हैं जो हिन्दू साधुओं द्वारा बनवाये हुए हैं|
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कभी कैवल्य पद की प्राप्ति होगी तभी बता पाऊंगा कि कैवल्य क्या है| आप सब के आशीर्वाद से कैवल्य अवस्था को भी अनुभूत कर ही लूंगा| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर 
५ फरवरी २०१८
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"कैवल्य" का अर्थ :--- (साभार स्वामी मृगेंद्र सरस्वती जी)
जीवात्मा का अपने स्वरूप में स्थित हो जाना कैवल्य है । आत्मा को भोग उपलब्ध कराने के लिए प्रवृत्त हुई प्रकृति जब अपने स्वरूप को कार्य रूप में परिणित करती है , तब गुणों में क्रमशः कारण - कार्य भाव उत्पन्न होकर कार्य क्षमता आ जाती है । इस समय चितिशक्ति ही प्रकृति के भोग की अनुभूति करती है । जीव अज्ञानता वश प्रकृति को अपना समझता है । शुद्ध आत्मा तो विकार से रहित है । जब गुण मोक्ष दिलाने का कार्य करते हैं तो क्रमशः अपने - अपने कारण में लीन हो जाते हैं , उसे कैवल्य कहते हैं । जीवात्मा के भोग समाप्त हो जाने पर मन और चित्त से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रह जाता है , तब जीवात्मा अपने निजस्वरूप में स्थित हो जाता है । जीवात्मा का अपने निज स्वरूप में स्थित हो जाने को कैवल्य कहते हैं । कैवल्य का अर्थ है - ' केवल उसी का होना ' अर्थात् उसके साथ किसी अन्य का न होना ।
नारायण स्मृतिः

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साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च --औपनिषद्वचोSनुसारमानन्दस्वरूपे समवस्थिति: कैवल्यम् | जयश्रीराम
साभार: आचार्य सियारामदास नैयायिक 
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कैवल्य अवस्था शुद्ध बोधस्वरुप है !
जहाँ केवल स्वयं है स्वयं के अतिरिक्त कुछ नहीं है !!
कारण - कार्य रूप मायिक द्रश्य को स्वयं से अभिन्न अनुभव करना कैवल्य प्राप्ति का मार्ग है !!

साभार : Adesh Gupta
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4 comments:

  1. Guruji, By following the Adwait Vedant we get Moksha. By follwing the other philosophies such as Naya, Mimamsa, Vaisheshika, Sankhya, Yoga do we get Mukti or Mosha?

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    1. आपका प्रश्न बहुत अच्छा है| आपकी बात का उत्तर देना मेरी क्षमता से परे है| धन्यवाद ! आपका मंगल हो |

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  2. "कैवल्य" शब्द का सही अर्थ .....

    युवावस्था में और उस से पूर्व यह शब्द कई बार पढ़ा था पर इसका अर्थ कभी ठीक से समझ में नहीं आया था| सन १९८२ में एक बार बांग्लादेश के चट्टगाँव नगर में गया था| वहाँ एक पहाड़ी पर एक हिन्दू मठ था जिसका नाम "कैवल्य धाम" था| वहाँ तीन-चार सेवक मिले जिनकी बांग्ला भाषा मैं नहीं समझ पाया| उसके बाद कैवल्य शब्द का सही अर्थ समझने की उत्सुकता और भी बढ़ी| बाद में धीरे धीरे साधना के अनुभवों, सत्संग और गुरुकृपा से समझ में आया कि "कैवल्य" का अर्थ है .... "जीवात्मा का अपने निज स्वरूप में स्थित हो जाना|" "केवल उसी परमात्मा का होना, अन्य किसी का नहीं|"

    यह एक अनुभूति है जो गहरे ध्यान में ही होती है| बुद्धि सिर्फ अनुमान लगा सकती है, समझ नहीं सकती|

    ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ ॐ ॐ !!
    कृपा शंकर
    ६ फरवरी २०१९

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