Monday 29 August 2016

हमारे शाश्वत और एकमात्र मित्र भगवान ही हैं .........

हमारे शाश्वत और एकमात्र मित्र भगवान ही हैं .........
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जीवन में अनेक व्यक्तियों से हमारा मिलना होता है| उनमें से अनेक हमारे मित्र बन जाते हैं| कुछ अच्छे मित्र बनते हैं और उनमें से कुछ शत्रु भी बन जाते हैं| बहुत अधिक घनिष्ठता भी घृणा में बदल जाती है| कई मित्रों से जीवन में दुबारा मिलना ही नहीं होता और कई काल कवलित हो जाते हैं| स्थायी और शाश्वत मित्रता की तो हम इस सृष्टि में कल्पना भी नहीं कर सकते| सारे सम्बन्ध निजी हितों और अपेक्षाओं पर आधारित हैं| जब हित आपस में टकराते हैं या अपेक्षाएँ पूरी नहीं होतीं तब मित्रता समाप्त हो जाती है|
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पर एक मित्र ऐसा भी है जो कभी साथ नहीं छोड़ता, जिसकी मित्रता अहैतुकी यानि बिना किसी शर्त के शाश्वत है| वह मित्र हर समय हमारे ऊपर दृष्टी रखता है, निरंतर हमारी रक्षा करता है और कभी साथ नहीं छोड़ता| जब हमने जन्म लिया उससे पूर्व भी वह हमारे साथ था और मृत्यु के पश्चात भी वह ही हमारे साथ रहेगा| वह इतना समीप है कि उसे हम देख नहीं पाते| दिखाई देने के लिए भी कुछ दूरी चाहिए पर उससे कोई दूरी नहीं है| उस मित्र ने ही माता-पिता के रूप में हमें प्यार किया| वह ही भाई-बहिन, सारे सम्बन्धियों और मित्रों के रूप में आया| हमारी इस देह के ह्रदय में भी वह ही धड़क रहा है, हमारी आँखों से वह ही देख रहा है, और हमारे पैरों से वह ही चल रहा है| वास्तव में यह देह भी उसी की है जो उसने हमें लोकयात्रा के लिए दी है|
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उसकी मित्रता तो हमारे से अहैतुकी यानि unconditional है, पर हम अपना हित या conditions थोप देते हैं तब ही वह हमारे सामने नहीं आता| हमारी सारी सांसारिक धन-संपत्ति, सारा सांसारिक ज्ञान, सारी सांसारिक उपलब्धियाँ, और सारी सांसारिक प्रतिबद्धताएँ और सारे सांसारिक सम्बन्ध तभी तक हैं जब तक वह इस देह के ह्रदय में धड़क रहा है| जब वह अचानक धड़कना बंद कर देगा तब सब कुछ छूट जाएगा, पता नहीं अज्ञात में हम कहाँ जायेंगे| यह पृथ्वी तक हमारे से छूट जाएगी|
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बुद्धिमानी का कार्य तो यही होगा कि हम उस शाश्वत मित्र से सचेतन मित्रता करें और जीवन का जो भी अति अल्प और सीमित समय मिला है उसे फालतू की गपशप और मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट न कर के उस के ही चिंतन में ही लगायें| बाकी आप सब समझदार और विवेकशील हो|
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शुभ कामनाएँ | ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||

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