Monday 29 August 2016

सारी साधनाएँ आध्यात्म की तैयारी मात्र हैं, अपने आप में आध्यात्म नहीं ........

सारी साधनाएँ आध्यात्म की तैयारी मात्र हैं, अपने आप में आध्यात्म नहीं ........
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आध्यात्म एक अनुभूति जन्य स्थिति है जिसे ईश्वर की कृपा से ही समझा जा सकता है| आत्‍म तत्व की निरंतर अनुभूति यानि परमात्मा के साथ एक होने की सतत् अनुभूति, दृष्टा दृष्टि और दृश्‍य --- इन सब का यानि ज्ञाता ज्ञान और ज्ञेय का एकाकार हो जाना, परम प्रेममय हो जाना, अकर्ता की स्थिति, साक्षी भाव का भी तिरोहित हो जाना, अनन्यता आदि ..... ये सब आध्यात्मिकता के लक्षण है| ईश्वर की कृपा से इस स्थिति को प्राप्त करना ही आध्यात्म है और जिस साधना से यह प्राप्त हो वह ही आध्यात्मिक साधना है|
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कोई मोक्ष प्राप्त करने के करने के लिए साधना करता है, वह किसी प्रयोजन के लिए, कुछ प्राप्त करने के लिए कर रहा है| यह आध्यात्म नहीं है| कोई स्त्री, पुत्र, धन-संपत्ति, मुकदमें में जीतने, सुख-शांति और व्यापार में सफलता के लिए साधना कर रहा है, वह किसी कामना पूर्ती के लिए कर रहा है| यह आध्यात्म नहीं है| जहाँ कोई माँग है वह आध्यात्म नहीं है|
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यह तो गूँगे का गुड़ है| मिश्री का स्वाद वही बता सकता है जिसने ग्रहण की हो, शेष तो अनुमान ही लगा सकते हैं अथवा उसके गुणों को नकार सकते हैं| कोई बताये भी तो क्या ? .....नेति-नेति | आत्मन्येवात्मने तुष्टः अर्थात आत्मा द्धारा ही आत्मा को संतुष्टि मिलती है|
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परमात्मा की अभिव्यक्ति आप सब दिव्य आत्माओं को नमन !
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

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